भारतीय चित्रकलाएं
परिचय
भारत में कलात्मक उत्कृष्टता की सुदीर्घ परंपरा रही है और चित्रकला उन प्रमुख माध्यमों में से एक है जिसका इसे ( परंपरा को ) व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता रहा है । इस प्रकार के कई साक्ष्य हैं जो बताते है कि भारत में चित्रकला का विकास प्राचीन काल से ही हुआ है । भारत के कुछ भागों में पुरातत्वविदों को इस प्रकार के भित्ति चित्र मिले हैं जिनसे पता चलता है कि भारत में प्राक् ऐतिहासिक मानव , कला और मनोविनोद की गतिविधियों में लगे हुए थे ।
चित्रकला के इतिहास के चिह्न प्राचीन और मध्यकाल से प्राप्त किए जा सकते है जहाँ पुस्तकें चित्रों से सजाई जाती थीं । इसके बाद लघु चित्रकला की शैली आई जिसका प्रभुत्व मुगल और राजपूत राजदरबारों में था । यूरोपियों के आगमन के साथ चित्रकला और उसके उत्कीर्णन ने पश्चिमी रूप ग्रहण किया । आधुनिक चित्रकारों ने , शैलियों , रंगों और डिजाइनों के साथ प्रयोग किये । कई भारतीय चित्रकारों ने विश्वव्यापी पहचान बनाई और पुरस्कार जीते तथा अपनी कल्पनाशीलता के लिए सराहे गए ।
चित्रकला के सिद्धांत
चित्रकला का इतिहास भीमबेटका , मिर्जापुर और पंचमढ़ी के प्राचीन शैल चित्रों से जाना जा सकता है । इसके बाद सिन्धु घाटी सभ्यता के चित्रित मृद्भाण्डों की बारी आती है , लेकिन वास्तविक चित्रकला का आरभ गुप्त काल से होता है । तीसरी शताब्दी के दौरान वात्स्यायन ने अपनी पुस्तक कामसूत्र में चित्रकला के 6 मुख्य सिद्धांतों / अंगों अथवा षडंग का उल्लेख किया है , जो इस प्रकार है :
रूप का भेद - रूपभेद
वस्तु या विषय का अनुपात - प्रमाण
रंगों के साथ चमक और प्रकाश का निर्माण - भाव
भावनाओं की तल्लीनता - लावण्य योजनम्
विषय की सदृश्यता का चित्रण - सदृश्य विधान
मॉडलिंग के प्रभाव से साम्यता के लिए रंगों का मिश्रण - वर्णिकाभंग
ब्राह्मण और बौद्ध साहित्य में चित्रकला के लिए कई संदर्भ हैं , उदाहरण के लिए , मिथकों और दंत कथाओं का वस्त्रों पर निरूपण लेप्यचित्र के रूप में ज्ञात है । हमें लेखिय चित्रकला का भी संदर्भ मिलता है । इसमें आरेखन और रेखाचित्र होते थे । धूली चित्र , पटचित्र आदि अन्य प्रकार थे ।
विशाखदत्त द्वारा रचित मुद्राराक्षस नाटक भी पाठकों के लिए विभिन्न चित्रकलाओं या पटों के नाम का उल्लेख करता है , जो कि चित्रकला की अलग शैलियों को समझने और चित्रकला के सभी सिद्धांतों का अवलोकन करने के लिए महत्वपूर्ण हैं । कुछ शैलियां इस प्रकार थीं :
चित्रकला की शैलियाँ -------- प्रमुख विशेषताएं चौक पिटक ( Chauka Pitaka ) --- पृथक् फ्रेम लगे हुए चित्र
दिग्हल पिटक ( Dighala Pitaka ) --- चित्रों की लंबी लड़ी
यम पिटक ( Yama Pitaka ) --- पृथक् चित्रकला
प्रागैतिहासिक चित्रकला ( Pre - historic Paintings )
प्रागैतिहासिक चित्रकला सामान्यतः चट्टानों पर की गई थी और इन शैल उत्कीर्णनों को पेट्रोग्लिफ ( Petroglyph ) कहा जाता है । प्रागैतिहासिक चित्रकला का पहला समुच्चय मध्य प्रदेश में भीमबेटका की गुफाओं में खोजा गया था । प्रागैतिहासिक चित्रकला के तीन प्रमुख चरण होते है :
1. उच्च पुरापाषाण काल के चित्र
2. मध्य पाषाण काल के चित्र
3. ताम्रपाषाण काल के चित्र
उच्च पुरापाषाण काल ( 40,000-10,000 ईसा पूर्व ) :-
चट्टानी आश्रय की गुफाओं की दीवारें क्वार्टजाइट पत्थरों से बनी हुई थी और इसलिए उन्होंने रंग के लिए खनिजों का उपयोग किया था । सबसे सामान्य खनिज पदार्थ चूने और पानी के साथ मिश्रित गेरू ( Othre ) था । वे लाल , सफेद , पीले और हरे जैसे रंग बनाने के लिए विभिन्न खनिज पदार्थों का उपयोग करते थे । इसने उनकी रुचि को विस्तृत बनाया । सफेद , काले , लाल और हरे रंग का उपयोग जंगली भैंसे , हाथी , गैंडे , बाघ आदि जैसे बड़े जानवरों को चित्रित करने के लिए किया जाता था । मानव आकृतियों में लाल रंग का आखेटकों के लिए और हरे रंग का अधिकांशतः नर्तकियों के लिए उपयोग किया जाता था ।
ताम्रपाषाण काल :-
चित्रण पर केंद्रित हैं । घोड़ों और हाथियों की सवारी करते हुए लोगों के कई चित्र हैं । उनमें से कुछ लोग धनुष - बाण इस काल में हरे और पीले रंगों का प्रयोग करने वाले चित्रों की संख्या में वृद्धि हुई । अधिकांश चित्र युद्ध दृश्यों के भी लिए हुए हैं जो संभवतः मुठभेड़ के लिए तैयारियों का संकेत है ।
हमें पता है कि ये गुफा स्थल उत्तर ऐतिहासिक काल में भी आबाद थे क्योंकि हमें अशोक और गुप्त काल दोनों के ब्राह्मी लिपि के लेख तथा चित्र के नमूने प्राप्त हुए हैं ।
इस काल के चित्रों का एक दूसरा समूह मध्य प्रदेश के ' नरसिंहगढ़ ' से मिला हैं । यहां सूखने के लिए रखी गई चित्तीदार हिरण की खाल को दिखाने वाले चित्र मिले हैं । यह इस सिद्धांत को बल प्रदान करता है कि चमड़ा बनाने की कला वस्त्र आश्रय तथा कपड़े उपलब्ध कराने के लिए मनुष्य द्वारा ईजाद की गई । इस अवधि के दूसरे चित्रों में वीणा जैसे संगीत वाद्य यंत्रों का भी चित्रण किया गया है । कुछ चित्रों में सर्पिल , विषम कोण और चक्र जैसे जटिल ज्यामितीय आकार भी हैं ।
उत्तरकाल के कुछ चित्र छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में रामगढ़ के पहाड़ी इलाकों में स्थित ‘ जोगीमारा ' की गुफाओं में भी देखे जा सकते हैं । इन्हें चित्रित करने की तिथि 1000 ईसा पूर्व के आसपास मानी जाती है । छत्तीसगढ़ , कांकेर जिले में स्थित विभिन्न प्रकार की गुफाओं का भी घर है , जैसे - उदकुदा , गरागोदी , खेरखेडा , गोटीटोला , कुलगांव आदि ।
इसी प्रकार के चित्र छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में स्थित घोडसर और कोहाबउर के शैल कला स्थलों में देखे जा सकते हैं । यहां एक और आर्कषक स्थल चितवा डोंगरी ( दुर्ग जिले ) में है । यहां से हमें गधे की सवारी करती चीनी आकृति , ड्रैगन और कृषि दृश्यों के चित्र मिलते हैं । कई आर्कषक शैलचित्र बस्तर जिले में स्थित लिमदरिहा और सरगुजा जिले में स्थित ऊगदी , सीतालेखनी में भी मिले हैं । ओडिशा में , गुडाहांडी रॉक शेल्टर और योगीमाथा रॉक शेल्टर भी प्रारंभिक गुफा चित्रकला के प्रमुख उदाहरण हैं ।
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