भारतीय कठपुतली कला
परिचय :-
कठपुतली कला मनोरंजन के प्राचीन रूपों में से एक है । कलाकार द्वारा नियंत्रित कठपुतली का विचारोत्तेजक तत्व इसे मनोरम अनुभव प्रदान करता है , जबकि प्रदर्शन का एनीमेशन और निर्माण की कम लागत इसे स्वतंत्र कलाकारों के बीच लोकप्रिय बनाती है । इसका प्रारूप कलाकार को रूप , डिजाइन , रंग और गतिशीलता के मामले में अबाधित स्वतंत्रता प्रदान करता है और इसे मानव जाति के सबसे सरल आविष्कारों में से एक बनाता है ।
भारतीय इतिहास या भारत में उद्गम :-
कठपुतली कला दीर्घकाल से मनोरंजन और शैक्षिक उद्देश्यों से भारत में रुचि की विषय - वस्तु रही है । हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन स्थलों से सॉकेट युक्त कठपुतलियां मिली हैं , जिससे कला के एक रूप में कठपुतली कला की उपस्थिति का पता चलता है । कठपुतली रंगमंच के कुछ संदर्भ 500 ईसा पूर्व के आसपास की अवधि में मिले हैं । कठपुतली का लिखित संदर्भ प्रथम और द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास रचित तमिल ग्रंथ शिलप्पादिकारण तथा महाभारत में भी मिलता है ।
कला के रूप के अतिरिक्त कठपुतली का भारतीय संस्कृति में दार्शनिक महत्व रहा है । भागवत गीता में ईश्वर को सत् , रज और तम रूपी तीन सूत्रों से ब्रह्मांड का नियंत्रण करने वाले कठपुतली के सूत्रधार के रूप में वर्णित किया गया है । भारतीय रंगमंच में , कथावाचक को सूत्रधार या ‘ सूत्रों का धारक ' कहा जाता था । सम्पूर्ण भारत के विभिन्न भागों में नाना प्रकार की कठपुतली परंपराओं का विकास हुआ । प्रत्येक कठपुतलियों का अपना अलग रूप था । पौराणिक कथाओं , लोक कथाओं और स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार कहानियों को अपनाया गया । कठपुतली कला ने चित्रकला , मूर्तिकला , संगीत , नृत्य और नाटक के तत्वों को आत्मसात् किया और कलात्मक अभिव्यक्ति के अनूठे अवसरों का निर्माण किया । हालांकि , समर्पित दर्शकों और वित्तीय सुरक्षा के अभाव ने आधुनिक काल में कला के इस रूप के निरंतर पतन के मार्ग को प्रशस्त किया है ।
भारत में कठपुतली कला को व्यापक रूप से चार श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है । कुछ प्रमुख उदाहरणों के साथ प्रत्येक की संक्षिप्त रूपरेखा इस प्रकार दी गई है । इस प्रकार दी गई है ।
धागा कठपुतलियां :-
• कठपुतली
• कंढेई
• गोम्बेयाटा
• बोम्मालाट्टम
छाया कठपुतलियां :-
• थोलू बोम्मालाटा
• रावणछाया
• तागालु गोम्बेयाटा
दस्ताना कठपुतलियां :-
• पावाकूथु
छड़ कठपुतलियां :-
• यमपुरी
• पुतुल नाच
धागा कठपुतली
धागा कठपुतलियों या मैरियोनेट का भारतीय सांस्कृतिक परंपराओं में प्रमुख स्थान है । धागा कठपुतलियों की विशेषताएं इस प्रकार हैं :
• कठपुतलियां लकड़ी से तराशी गई सामान्यतः 8-9 इंच की लघु मूर्तियां होती हैं ।
•प्रारम्भ में लकड़ी को रंगने और आंख , होंठ , नाक आदि जैसी अन्य मुखाकृतिक विशेषताओं का संयोजन करने के लिए ऑयल पेंट का प्रयोग किया जाता है
•अंग बनाने के लिए शरीर के साथ लकड़ी के छोटे - छोटे पाइप लगाए जाते हैं । इसके बाद शरीर को रंगीन लघु पोशाक से ढंका और सिला जाता है ।
•यथार्थवादी अनुभूति देने के लिए लघु आभूषण और अन्य सामग्रियां संलग्न की जाती हैं ।
•धागा हाथ , सिर और शरीर की पीठ में छोटे छेद से जुड़ा होता हैं । इसके बाद इसे कठपुतली कलाकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है ।
भारत में धागा कठपुतली के कुछ लोकप्रिय उदाहरण हैं ।
कठपुतली :-
राजस्थान की परंपरागत सूत्र ( string ) कठपुतलियों को कठपुतली के रूप में जाना जाता है । इसका नाम ' कठ ' यानी ' लकड़ी ' और ' पुतली ' यानी ' गुड़िया ' से निकला है । कठपुतलियों को पारंपरिक उज्ज्वल राजस्थानी पोशाक पहनाई जाती है । इनका प्रदर्शन नाटकीय लोक संगीत के साथ होता है । कठपुतलियों की एक अनूठी विशेषता पांवों का अभाव है । धागा कठपुतली कलाकार की उंगली से जुड़ा होता है ।
कंढेई :-
ओडिशा की सूत्र कठपुतलियों को कंढेई के रूप में जाना जाता है । इन्हें हल्की लकड़ी से बनाया जाता हैं और लंबी स्कर्ट पहनाई जाती है । इन कठपुतलियों में अपेक्षाकृत अधिक जोड़ होते हैं , इस प्रकार कठपुतली कलाकार को अधिक लचीलापन मिलता है । धागे त्रिकोणीय आधार से जुड़े होते हैं । कंढेई कठपुतली प्रदर्शन पर ओडिसी नृत्य का उल्लेखनीय प्रभाव है ।
गोम्बेयाटा :-
यह कर्नाटक का पारंपरिक कठपुतली प्रदर्शन है । इन्हें यक्षगान रंगमंच के विभिन्न पात्रों के अनुसार तैयार और डिजाइन किया जाता है । इस कठपुतली कला की एक अनूठी विशेषता यह है कि इसमें कठपुतली को नचाने के लिए एक से अधिक कठपुतली कलाकारों की सहायता ली जाती है ।
बोम्मालाट्टम :-
बोम्मालाट्टम तमिलनाडु के क्षेत्र की स्वदेशी कठपुतली है । इसमें छड़ और धागा कठपुतली की विशेषताओं का संयोजन होता है । धागे कठपुतली नचाने वाले द्वारा सिर पर पहने जाने वाले लोहे के छल्ले से जुड़े होते हैं । बोम्मालाट्टम कठपुतलियां भारत में पायी जाने वाली सबसे बड़ी और भारी कठपुतलियां होती हैं इनमें से की ऊंचाई 4.5 फुट जितनी बड़ी और वजन 10 किलोग्राम का होता है । बोम्मालाट्टम रंगमंच के चार विशिष्ट चरण हैं- विनायक पूजा , कोमली , अमानट्टम और पुसेनकनट्टम ।
छाया कठपुतलियां :-
भारत में छाया कठपुतली की समृद्ध परंपरा रही है , जो कि अब तक चल रही है । छाया कठपुतली की कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं :
• छाया कठपुतलियां चमड़े से काट कर बनाई गईं समतल आकृतियां होती हैं ।
• चमड़े के दोनों ओर आकृतियों को एक समान चित्रित किया जाता है ।
• कठपुतलियां श्वेत स्क्रीन पर रखी जाती हैं । इसके पीछे से प्रकाश डाला जाता है जिससे स्क्रीन पर छाया बन जाती है ।
• आकृतियों को इस प्रकार चलाया जाता है कि खाली स्क्रीन पर बनने वाला छायाचित्र कहानी कहने वाली छवि बनाता है ।
छाया कठपुतली के कुछ लोकप्रिय उदाहरण इस प्रकार हैं :
तोगालु गोम्बेयाटा :-
यह कर्नाटक का लोकप्रिय छाया रंगमंच है । तोगालु गोम्बेयाटा कठपुतलियों की एक अनूठी विशेषता सामाजिक स्थिति के आधार पर कठपुतली के आकार में भिन्नता है । यानी राजाओं और धार्मिक आकृतियों की विशेषतः बड़ी कठपुतलियां होती हैं जबकि आम लोगों और नौकर - चाकरों को छोटी कठपुतलियों द्वारा दिखाया जाता है ।
रावणछाया :-
यह छाया कठपुतली में सबसे नाटकीय है और ओडिशा में मनोरंजन का लोकप्रिय रूप है । यह कठपुतलियां हिरण की त्वचा से बनी होती हैं और निर्भीक , नाटकीय मुद्राओं को दर्शाती हैं । इनमें कोई जोड़ नहीं होता है । लिहाजा यह अधिक जटिल कला बन जाती है । साथ ही वृक्षों और जानवरों के रूप में भी कठपुतलियों का प्रयोग होता है । इस प्रकार रावणछाया कलाकार गीतात्मक और संवेदनशील नाटकीय कथा का सृजन करते हुए अपनी कला में अत्यंत प्रशिक्षित होते हैं ।
थोलू बोम्मालाटा :-
यह आंध्र प्रदेश का छाया रंगमंच है । इसमें प्रदर्शन के साथ शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि होती है और यह महाकाव्यों और पुराणों की पौराणिक और भक्तिमय कथाओं के इर्द - गिर्द घूमता है । यह कठपुतलियां आकार में बड़ी होती हैं और दोनों ओर रंगी होती हैं ।
पावाकूथु :-
यह केरल का पारंपरिक दस्ताना कठपुतली प्रदर्शन है । इसकी उत्पत्ति 18 वीं सदी ईस्वी के आसपास हुई । इन कठपुतलियों को रंगीन दुपट्टों , पंखों और चेहरे के रंगों से सजाया जाता है । यह कथकली नृत्य शैली से अत्यधिक प्रभावित है । इसमें नाटक रामायण और महाभारत की कथाओं पर आधारित होती हैं ।
छड़ कठपुतलियां :-
छड़ कठपुतलियां दस्ताना कठपुतलियों के अपेक्षाकृत बड़ा रूपांतर हैं और स्क्रीन के पीछे से कठपुतली कलाकार छड़ी से इन्हें नियंत्रित करता है । यह मुख्य रूप से पूर्वी भारत में लोकप्रिय है । कुछ लोकप्रिय उदाहरण इस प्रकार हैं :
यमपुरी :-
यह बिहार की पारंपरिक छड़ कठपुतली है । कठपुतलियां सामान्यतः लकड़ी की बनी होती हैं और इनमें कोई भी जोड़ नहीं होता है । इन्हें लकड़ी के एक टुकड़े से तराशा जाता है और उसके बाद चमकदार रंगों से रंगा और सजाया जाता है ।
पुतुल नाच :-
यह बंगाल - ओडिशा - असम क्षेत्र का पारंपरिक छड़ कठपुतली नृत्य है । इसमें आकृतियां सामान्यतः 3-4 फुट लम्बी होती हैं और जात्रा के पात्रों की भांति कपड़े पहने होती हैं । इनमें सामान्यतः तीन जोड़ होते हैं- कमर पर , गर्दन पर और कंधों पर ।
प्रत्येक कठपुतली कलाकार ऊंचे पर्दे के पीछे होता है । ये सभी अपनी कमर से जुड़ी छड़ी के माध्यम से एक - एक कठपुतली नियंत्रित करते हैं । कठपुतली कलाकार पर्दे के पीछे के चारों ओर चलता है और इसी प्रकार की गति कठपुतलियों को भी प्रदान करता है । प्रदर्शन के साथ हारमोनियम , झांझ और तबला बजाने वाले 3-4 संगीतकारों का संगीतमय दल संगत देता है ।
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