Facebook SDK

 भारत में कैलेण्डर

          परिचय :-

     कैलेण्डर सामाजिक , धार्मिक , व्यापारिक तथा प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए दिनों को नियोजित करने की एक पद्धति होती है । इसमें समय के परिक्रमण काल ( विशेषतः दिन , सप्ताह , मास तथा वर्ष ) को नाम प्रदान किया जाता पद्धति में किसी एक , विशिष्ट दिन को तिथि कहा जाता है । कैलेण्डर इस प्रकार की प्रणाली का एक भौतिक रिकॉर्ड ( प्रायः कागज पर ) भी होता है ।

     भारत में नव वर्ष के आरम्भ को इंगित करने के लिए गणना की विविध प्रणालियाँ प्रचलित रही हैं । भारत के विभिन्न क्षेत्रों में कैलेण्डरों के निर्माण हेतु अपनाई गयी प्रणाली निम्नलिखित तीन प्रकारों में से कोई एक होती है :

      • सौर प्रणाली 
      • चन्द्र प्रणाली 
      • चन्द्र - सौर प्रणाली

         विभिन्न कैलेंडरों में अपनाई गयी ये प्रणालियाँ खगोलीय वर्षों पर आधारित होती हैं जो इन खगोलीय पिंडों की गति का अनुसरण करती हैं । ये प्रणालियाँ निम्नलिखित नामों से जानी जाती है : 

     • सौर वर्षः यह पृथ्वी द्वारा क्रांतिवृत्त , यथा - संक्रांति या विषुव से हो कर जहां इसे अपनी यात्रा पूर्ण कर लौटना होता है , सूरज के चारों ओर अपनी कक्षा में परिक्रमण करने में लगा हुआ समय है । सौर वर्ष में 365 दिन , 5 घंटे , 48 मिनट तथा 46 सेकण्ड होते हैं । यह पद्धति वर्ष तथा ऋतुओं के बीच निकटतम संगतता को बनाए रखती है । सौर वर्ष में कुल 12 महीने होते हैं ।

     • चन्द्र वर्षः सौर वर्ष की भांति चन्द्र वर्ष में भी 12 महीने होते हैं । तथापि , प्रत्येक चन्द्र मास दो क्रमिक पूर्णमासियों या अमावस्याओं के बीच की अवधि में परिमित संयुति ( Synodic ) मास होता है । चूंकि एक चन्द्र मास में 29.26 से लेकर 29.80 दिन होते हैं , इससे 354 दिनों की अवधि प्राप्त होती है जो सौर वर्ष की अपेक्षा 11 दिन कम होती है । 

    • चन्द्र - सौर वर्षः यहाँ वर्ष को सौर चक्रों तथा मासों को चन्द्र विभाजनों द्वारा हिन्दू कैलेंडरों में दिए गए तरीके से आंकलित किया जाता है । इन दोनों के बीच के समायोजनों को दिनों तथा मासों के अंतर्निवेश के द्वारा यथार्थ रूप दिया जाता है । चन्द्र वर्ष को सौर वर्ष के बराबर बनाने के लिए इस अंतर को अंतर्निवेशन या लुप्तान्गता के द्वारा समाप्त किया जाता है । सौर वर्ष में समायोजित करने के लिए चन्द्र वर्ष में एक अंतर्विष्ट मास प्रत्येक 2 वर्ष और 6 महीने के बाद दोहराया जाता है । इस अतिरिक्त या अंतर्वेशी मास को अधिक मास कहा जाता है । 

   आइए अब हम कैलेण्डर की इन तीनों प्रणालियों के बीच मौजूद विविध मासों की चर्चा करते हैं :

    • सौर मासः सौर वर्ष में 12 महीने होते हैं तथा उनके नाम 12 राशि चक्र चिन्हों के नाम पर रखे जाते हैं । इन राशि चक्र चिन्हों को राशि या भारत के कुछ भागों में भवनों के नाम से भी जाना जाता है । ये 12 राशियों हैं : मेष ( एरीज ) , वृषभ ( टॉरस ) , मिथुन ( जैमिनी ) , कर्क ( कैंसर ) , सिंह , ( लियो ) , कन्या ( वर्गो ) , तुला ( लिब्रा ) , वृश्चिक ( स्कॉर्पियो ) , धनु ( सैजिटेरियस ) , मकर ( कैप्रिकॉर्न ) , कुम्भ ( अक्वेरियस ) , मीन ( पाइसीज ) ।

     • चन्द्र मासः यह मास अमावस्या या पूर्णिमा को समाप्त होता है । चन्द्र प्रणाली में मास के आरम्भ होने की दो विधियां होती हैं । इन्हें अमासांत या पूर्णिमांत कहते हैं , अर्थात् , वे या तो क्रमशः पूर्णिमा के अगले दिन शुक्ल पक्ष या अमावस्या के अगले दिन कृष्ण पक्ष से आरम्भ होते हैं । 

       उपर्युक्त दो प्रकार के मासों में चन्द्र मास ही भारत के अधिकांश भागों में प्रचलित हैं ।

                     अधिक मास

 विशिष्ट मासों में होने वाली प्राकृतिक घटनाओं तथा ऋतुओं के चक्रों को बिगड़ने से बचाने के लिए चन्द्र वर्ष तथा सौर वर्ष के बीच के अंतर को समायोजित करने के उद्देश्य से प्रत्येक 2 से 3 वर्षों के बाद किसी चन्द्र वर्ष में जोड़े जाने वाले अन्तर्निवेशी मास को अधिक मास कहा जाता है । चन्द्र वर्ष में 354 दिन होते हैं तथा यह प्रत्येक वर्ष सौर वर्ष से 11 दिन कम होता है । इन 11 दिनों को समायोजित करने के उद्देश्य से प्रत्येक 2 वर्ष और 6 मास के अंतराल में चन्द्र कैलेण्डर में एक अंतर्वेशी मास जोड़ा जाता है । इसे अधिक मास या मल मास के नाम से जाना जाता हैं । 

                                      सूरज प्रत्येक वर्ष एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है । सूरज की आभासी गति असमान होने के कारण सूरज के द्वारा विभिन्न राशियों से गुजरने वाली अवधि एक समान नहीं होती । किसी राशि चक्र चिन्ह में सूरज के प्रवेश को संक्रमण या संक्रांति कहा जाता है । यह हर मास में आती है । एक वर्ष में ऐसे 12 संक्रमण होते हैं । कभी - कभी , यद्यपि , ऐसा होता है कि किसी चन्द्र मास के दौरान सूरज किसी भी राशि चक्र से होकर नहीं गुजरता , तथा दो क्रमिक चन्द्र दिवस , एक संक्रांति और एक अन्य के बीच आ जाते हैं तभी अधिक मास प्रारम्भ होता है । दूसरे शब्दों में , हम कह सकते हैं कि अधिक मास वह मास है जिसकी अवधि में कोई संक्रांति नहीं होती । 

                      इसके ठीक विपरीत , ऐसा मास जिसके दौरान दो सूर्य - संक्रांतियां घटित हों , उसे शाय ( Kshaya ) मास ( अर्थात् ऐसा मास जिसे चन्द्र वर्ष से हटा दिया जाए ) कहा जाता है ।

                      विभिन्न कैलेंडरों के महीनों को पक्षों या पखवाड़ों , सप्ताहों तथा दिवसों में बांटा जाता है । ये दोनों पक्ष या पखवाड़े निम्नलिखित हैं : 

   • शुक्ल पक्ष ( उजाला अर्धांश ) जो अमावस्या के अगले दिन से आरम्भ होता है , तथा ; 

   • कृष्ण पक्ष ( अन्धेरा अर्द्धाश ) जो पूर्णमासी के अगले दिन से आरम्भ होता है ।

     चन्द्र दिवस को तिथि या वासर , जबकि सौर दिवस को दिवस कहा जाता है । 

     तिथि या चन्द्र दिवस की अवधि दिवस या सौर दिवस से कम होती है जिसमें एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक एक दिन तथा एक रात सम्मिलित होते हैं । एक तिथि की औसत अवधि 23 घंटा 30 मिनट होती है जो दिवस या सौर दिवस से 23 मिनट कम होती है ।

         तिथि को , इसके पश्चात् , घटिका , पल और विपल में विभाजित किया जाता है , तथा इसे निम्न प्रकार से ग्रेगोरी कैलेण्डर से संबंधित है :

   • एक दिन तथा रात्रि - 1 दिवस -24 घंटे - 60 घटिकाएं
   • एक घटिका = 60 पल = 24 मिनट
   • एक पल = 60 विपल 24 सेकण्ड
   • दो घटिकाएं : 1 मुहूर्त = 48 मिनट
इस प्रकार , 2.5 मुहूर्त दो घंटों के बराबर होते हैं ।

भारत में कैलेण्डर : सौर प्रणाली, चन्द्र प्रणाली, चन्द्र - सौर प्रणाली


                     हिन्दू कैलेण्डर 

     पंचांग या हिन्दू कैलेण्डर में पांच , अर्थात , पांच अंगों , यथा - वर्ष , मास , पक्ष , तिथि तथा घटिका या फिर , तिथि , वार , नक्षत्र , योग तथा कारण को ध्यान में रखा जाता है । 

        एक वर्ष के दौरान सूरज जिन 12 स्थानों या क्रान्ति वृत्त या राशियों से हो कर गुजरता है , उन्हें नक्षत्र कहे जाने वाले तारों के नाम पर नामित किया जाता है । कुल 28 नक्षत्र या तारामंडल होते हैं । नक्षत्रों का आकार एक समान नहीं होता है । उनमें तारों की एक - सी संख्या भी नहीं होती ; कुछ में तो एक या दो भी होते हैं । प्रत्येक राशि में दो से तीन नक्षत्र होते हैं । 

      सौर वर्ष को हिन्दू कैलेण्डर के तहत दो हिस्सों में विभाजित किया गया है-

    • उत्तरायण : मकर संक्रांति से कर्क संक्रांति तक के पहले छ : महीने , अर्थात् , पौष ( जनवरी ) से आषाढ़ ( जून ) इसे देवताओं के दिन के रूप में जाना जाता है । 

    • दक्षिणायण : जुलाई से दिसंबर तक अंतिम छ : महीने देवताओं की रात्रि कहे जाते है । 

    इस प्रकार , एक सौर वर्ष देवताओं के एक दिन तथा एक रात के बराबर होता है ।

Post a Comment

Previous Post Next Post