कानून और संस्कृति
परिचय :-
भारतीय संविधान के तीन खंड हैं जिन्हें विशेष रूप से भारतीय संस्कृति के सरंक्षण के लिए निर्दिष्ट किया गया है । सरकार और संविधान परिरक्षण के इस कार्य में विशिष्ट भूमिका निभाते हैं क्योंकि इतिहास , ललित कला , साहित्यिक कलाकृतियों के कारण ही सम्पूर्ण विश्व हमारे देश की विरासत और महत्व से इतना प्रभावित है । हम सर्वप्रथम देश की विरासत के संरक्षण से संबंधित संविधान के तीन अनुच्छेदों पर चर्चा करेंगे और उसके बाद कुछ कार्यों को सूचीबद्ध कर उस पर विस्तारपूर्वक चर्चा करेंगे , जिनकी स्थापना हमारी कला एवं पुरावस्तुओं की रक्षा करने के लिए की गई है ।
भारत के संविधान से :-
अनुच्छेद 29 : ' अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण ' यह अनुच्छेद सम्पूर्ण रूप से उन समुदायों की संस्कृति की रक्षा करने पर केन्द्रित है जिसमें भारतीय संविधान के अनुसार अल्पसंख्यकों का समावेश है । संविधान के अनुसार :
" भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग में निवास करने वाले , किसी भी वर्ग के नागरिकों को जिनकी अपनी एक विशिष्ट भाषा , लिपि या संस्कृति हो , उसे संरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता है । "
जैसा कि इस उद्धरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि यह प्रावधान छत्तीसगढ़ , राजस्थान , उत्तरी - पश्चिमी क्षेत्रों , ओडिशा की आदिवासी जाति के लोगों तथा संख्या की दृष्टि से छोटे समूहों जैसे पारसियों को अपनी संस्कृति , भाषा और साहित्य को संरक्षित करने के लिए कदम उठाने की अनुमति देता है ।
इससे अपनी विरासत को संरक्षित करने के लिए राज्य और किसी राज्य द्वारा वित्त पोषित एजेंसी से सहायता प्राप्त करने से संबंधित उनके अधिकार की भी पुष्टि होती है । इससे यह भी स्पष्ट होता है कि किसी भी नागरिक को उनके धर्म , जाति , भाषा , नस्ल या उनमें से किसी भी आधार पर राज्य द्वारा अनुरक्षित संस्थान द्वारा सहयोग से वंचित नहीं किया जाएगा ।
अनुच्छेद 49 : “ स्मारकों और राष्ट्रीय महत्व वाले स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण '
संविधान के इस अनुच्छेद में उन सभी स्मारकों और वस्तुओं के महत्व के बारे में बताया गया है , जिनका सम्बन्ध भारत की विरासत के साथ है । राष्ट्रीय महत्व वाली इन वस्तुओं के क्षतिग्रस्त होने की स्थिति में इनका संरक्षण राज्य के अधीन होगा । संविधान कहता है कि :
1. कलात्मक या ऐतिहासिक रुचि वाले प्रत्येक स्मारक या स्थान या वस्तु की रक्षा करना राज्य का दायित्व होगा ।
2. जिस किसी स्मारक को संसद द्वारा या उसके द्वारा बनाए गए कानून के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व वाला स्मारक घोषित कर दिया गया है उस स्मारक को विकृति , विरूपण , विनाश , निष्कासन , निपटान या निर्यात , किसी भी अवस्था में बचाना चाहिए ।
अनुच्छेद 51A ( f ) ' भारतीय संस्कृति की समृद्ध विरासत का महत्व और संरक्षण '
ऊपर उल्लिखित दो अनुच्छेदों के विपरीत अनुच्छेद 51 ( A ) भारत के प्रत्येक नागरिक के मौलिक कर्तव्यों को बताता है । संविधान सभी लोगों को हमारे मिश्रित संस्कृति की मूर्त और अमूर्त विरासत को महत्व देने और उसकी रक्षा करने का निर्देश देता है । इससे इस बात का भी पता चलता है कि हमारे समाज की परंपराओं और उसे नियंत्रित करने के लिए बनाए गए कानूनों के बीच एक संबंध है । संस्कृति समाज की परिवर्तनशीलता को प्रतिबिंबित करती है और कानून इसे संरक्षित करता है , इसलिए नागरिकों को उसमें अपनी भूमिका निभानी चाहिए ।
इन अनुच्छेदों के अतिरिक्त , संविधान और हमारे कानून निर्माताओं ने कई अधिनियम भी बनाए हैं , जिनके अंतर्गत हमारी संस्कृति से संबंधित कानूनों को तोड़ने वालों को दण्डित किया जाता है । प्राथमिक अधिनियमों में से कुछ निम्नलिखित हैं :
1. भारतीय गुप्त कोष अधिनियम , 1878
ब्रिटिश सरकार ने अकस्मात् प्राप्त होने वाले खजाने को संरक्षित करने के लिए इस अधिनियम की स्थापना की थी क्योंकि किसी राज्य पर अधिकार करने के बाद अंग्रेज तत्कालीन शासक के खजाने को लूट लेते थे और उस पर अपना अधिकार स्थापित कर लेते थे । पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्त्व वाली वस्तुओं को संरक्षित किया जाता था ताकि मंचित खजानों की एक निर्देशिका बनाई जा सके और कानूनी रूप से उनका निपटान किया जा सके ।
इस अधिनियम से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण पहलू थे:
• इसके अनुसार किसी भी खजाने का पता चलने पर उसे संबंधित जिलाधीश या निकटतम सरकारी कोषागार के समक्ष प्रस्तुत किया जाने के साथ ही कलाकृति ( यों ) से संबंधित सभी प्रासंगिक जानकारी , सरकार के समक्ष प्रस्तुत की जानी चाहिए ।
• यदि कोई व्यक्ति संबंधित प्राधिकारी को सूचित करने से संबंधित इस निर्देश का पालन नहीं करता है या खजाने में फेरबदल करने या खजाने की पहचान और मूल्य को छिपाने का प्रयास करता है तो उसे कई तरह के दंडों का सामना करना पड़ेगा जैसे भारी जुर्माना देना या जेल भेजा जाना ।
• यदि जिस स्थान से खजाना मिला है उस स्थान का स्वामी सरकार के साथ खजाने का कुछ प्रतिशत साझा करने में असफल हो जाता है तो उसे न्यायाधीश के समक्ष दोषी सिद्ध किया जाएगा और 6 महीने के लिए जेल भेज दिया जाएगा , या उस पर जुर्माना लगाया जाएगा , या दोनों दंड दिए जाएंगे ।
2. प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम , 1904
ब्रिटिश सरकार ने सरकार को स्मारक पर प्रभावी संरक्षण और अधिकार प्रदान करने हेतु इस अधिनियम का गठन किया ताकि राष्ट्रीय विरासत का संरक्षण हो सक । यह अधिनियम विशेष रूप से उन स्मारकों से संबंधित था जो व्यक्तिगत या निजी स्वामित्व के अधीन थे ।
केंद्र सरकार और स्वामी किसी भी संरक्षित स्मारक के संरक्षण के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे । यह स्वामी को स्मारक में कुछ जोड़ने , उसे ध्वस्त करने , उसमें परिवर्तन करने या उसे विरूपित करने से भी रोकता है । यदि उस भूमि को बेचा जा रहा है जिस पर वह स्मारक स्थित है तो उस भूमि को खरीदने का प्रथम अधिकार सरकार का होगा ।
प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम , जिसे पहली बार 1904 में लागू किया गया तथा 1932 में संशोधित किया गया । संशोधन के बाद यह प्राचीन स्मारक संरक्षण ( संशोधन ) अधिनियम बन गया । इसके अतिरिक्त 1958 में केन्द्र सरकार ने " प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष अधिनियम ' ' लागू करके ग्रामीण तथा शहरी पुरातात्विक स्थलों को भी संरक्षण क्षेत्र में सम्मलित कर लिया । उल्लेखनीय है कि संसद ने ऐतिहासिक स्मारकों और राष्ट्रीय महत्व वाले पुरातात्विक स्थलों को और अच्छी तरह संरक्षित करने के लिए प्राचीन स्मारक और “ पुरातात्विक स्थल एवं अवशेष ( संशोधन और विधिमान्यकरण ) अधिनियम , 2010 " को सूत्रबद्ध किया ।
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