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भारत में यूरोपीयो का आगमन : पुर्तगाली/ विस्तार एवं रणनीति/धार्मिक नीति

            भारत में यूरोपीयो का आगमन(Arrival of Europeans in India)                  

 पुर्तगाली (Portuguese)purtgali

1. 15वी से 19वी सदी के मध्य में यूरोप में आर्थिक रूपांतरण हुआ इस कालावधी के दौरान यूरोप में कृषि विशेषकर विनिर्माण में अपनाई गई तकनीकों से व्यापार एवं बाजार में तीव्रता से वृद्धि हुई।

2. पुर्तगाली नाविक बर्थोंलोम्यो डियाज 1487 को अफ्रीका के दक्षिणी सिरे पर जा पहुंचा जिस रास्ते से उसने अफ्रीका पहुंचा उसे केप ऑफ गुड होप नाम दिया गया 1488 में बर्थोंलोम्यो डियाज लिस्बन वापस लौट गया।

3. ठीक 10 साल बाद 17 मई 1498 को वास्कोडिगामा उसी रास्ते से कालीकट पहुंचा। कालीकट के राजा जमोरिन ने वास्कोडिगामा को भारत आने पर स्वागत किया।

4. वास्कोडिगामा को भारत आने से पहले यूरोपीय यात्री भारत आते जाते रहते थे लेकिन वास्कोडिगामा के भारत आने पर भारतीय दशा एवं बुरी तरह से प्रभावित हुआ।

5. वास्कोडिगामा जिस समय व्यापार करने भारत आया था उस समय हिंद महासागर पर अरब व्यापारी का एकाधिकार था लेकिन आगामी 15 वर्षों में पुर्तगालियों ने और अब नौपोते को बुरी तरह से नष्ट कर दिया एवं कई अधिकारियों को बंदी बनाकर उस पर धनात्मक कार्यवाई भी किया।

6. सन 1501 में पुर्तगाली सम्राट मैनुअल प्रथम ने खुद को और अरब ,फारस और भारत के व्यापार पर मालिक घोषित कर दिया ।

7. पुर्तगाली का स्पष्ट मंतव्य था कि वह भारत व्यापार हेतु आया था लेकिन उसका छुपा हुआ एजेंडा ईसाई मत का प्रचार एवं प्रसार करना भी था।

8. वास्कोडिगामा भारत के साथ व्यापार कर 60 गुना से भी अधिक मुनाफा कमाकर लिस्बन वापस लौट गया। वास्कोडिगामा के विजय वापसी पर पुर्तगाली सम्राट ने पेड्रोआल्वेरज केबरल(ब्राजील के खोजी) के नेतृत्व में बर्थोंलोम्यो डियाज के साथ 13 जहाजों और 1200 से अधिक सैनिक का एक बड़ा बेड़ा भारत भेजा ।

9. केबरल जब भारत पहुंचा तो उसे कालीकट के शासक जमोरिन को परास्त करने के लिए अरबों से युद्ध करना पड़ा। केबरल ने कोचीन और कन्नौज में अपना व्यापार सुरक्षित कर कालीकट को छोड़ दिया और वहां से बड़ा मुनाफा कमाकर लिस्बन वापस लौट आया।

भारत में यूरोपीयो का आगमन : पुर्तगाली/ विस्तार एवं रणनीति

10. केबरल के लिस्बन वापसी के बाद 1502 में वास्कोडिगामा फिर से कालीकट आया और अपना व्यापार भारत में सुनिश्चित करने के लिए समुद्रों पर अपना वर्चस्व बढ़ाने का प्रयास किया।

11. समुद्री वर्चस्व बढ़ाने के लिए उसने एशिया के महत्वपूर्ण व्यापारिक स्थल, अड्डों या फितोपिया पर कब्जा करने का प्रयास किया, परंतु फितोपिया पर कब्जा करने में असफल रहा। फितोपिया एक ऐसा व्यापारिक स्थल था जहां से नौसेना बेरो को सहायता प्रदान किया जाता था।

     पुर्तगाली सूत्रपात एवं विस्तार की रणनीति।(Portuguese Initiation and Expansion Strategy)

1. पुर्तगाली(purtgali) का भारत में नया इतिहास तब शुरू हुआ जब पुर्तगाली सम्राट ने भारत में 3 वर्षों के लिए एक नए गवर्नर को नियुक्त किया और उसे पुर्तगाली के रक्षा हेतु पूरा शक्ति प्रदान किया गया ।

2. भारत में पुर्तगाल का पहला गवर्नर फ्रांसिस्को डी एलमेडा को 1505 में बनाया गया । और इसे मलक्का, आमूर्ज़ पर अधिकार कर अरब व्यापारियों को नष्ट करने की सलाह दिया गया।

3. मिस्र ने पुर्तगाली व्यापार को रोकने के लिए लाल सागर पर अपनी चौकासी बढ़ा दी। और 1507 में मिस्र नौसेना और गुजरात के नौसेना दोनों ने संयुक्त रूप से पुर्तगाली नौसेना को पराजित कर दिया जिसमें अलमेडा का पुत्र मारा गया।

4. अगले वर्ष ही एलमेडा ने मिस्र नौसेना एवं गुजरात के नौसेना को पूरी तरह से पराजित कर अपना बदला ले लिया।

5. 1509 में मिश्र शासक मममूलक द्वारा भेजे गए जहाजी बेरो को पुर्तगाली ने पराजित कर उसे लूट लिया तथा दमन एवं दीव पर अपना अधिकार कर लिया।

           विस्तार एवं रणनीति।(purtgali)

1. फ्रांसिस्को डी अलमेडा के बाद 1509 में पुर्तगाली द्वारा भारत में द्वितीय गवर्नर अल्फांसो डी अल्बुकर्क को नियुक्त किया गया जो 1503 में भारत में स्क्वैड्रेन कमांडर के रूप में भारत आया था।

2. अल्बुकर्क के पास राजनीति का ज्यादा अनुभव था इसने पुर्तगाली साम्राज्य को विस्तार किया। इसे भारत में व्यापार का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है।

3. अल्बुकर्क ने बीजापुर के सुल्तान को पराजित कर 1510 में गोवा पर अपना अधिकार जमा लिया एवं उसे प्रशासनिक केंद्र के रूप में बनाया।

4. अल्बुकर्क ने हिंद महासागर पर नियंत्रण पाने के लिए महासागर के सभी प्रवेश द्वार पर अपना बेस स्थापित किया, इसने भारतीय महिलाओं से विवाह करने की नीति अपनाई ।

5. अल्बुकर्क ने गोवा पर 1510 में कब्जा करने के बाद लाल सागर के पास स्थित सुकोत्रा द्वीप, सुमात्रा के सचिन दुर्ग, श्रीलंका के कोलंबो इत्यादि में नए किले स्थापित किए।

6. वायसराय नीनो दा कुन्हा को नवंबर 1529 में वायसराय बनाया गया जिसने 1530 में पुर्तगाली प्रशासनिक मुख्यालय जो कि गोवा में था, उसे कोचिंग में ला दिया। इसने 1531 में चाउल, 1532 में द्वीव, 1534 में बेसीन इत्यादि क्षत्रो पर किला स्थापित किया ।

7. पुर्तगालियों(purtgali) ने समुद्र पर अपना वर्चस्व कायम करने के बाद कॉटेज व्यवस्था की शुरुआत की जिसमें भारतीय जहाजों को पुर्तगाली द्वारा लाइसेंस या पास लेना पड़ता था, जो पुर्तगाली गवर्नर देता था इस पास के होने से पुर्तगाली उस जहाज को आने-जाने देता था और जिसके पास या पास नहीं होता था उस जहाज को लूट लेता था।

पुर्तगालियों का धार्मिक नीति

पुर्तगाली सम्राट को भारत के सभी गिरिजाघरों और मशीनों का संरक्षक बनाया गया लेकिन ऐसा 1542 में जेसुएट को भारत आने के बाद हुआ । जेसुएट रोमन कैथोलिक समाज का एक सदस्य था ।

                                1. अकबर और पुर्तगाली :-  अकबर सबसे पहले पुर्तगाली से तब मिले थे जब वह कैम्बे का दौरा कर रहे थे उसके बाद अकबर का मुलाकात सूरत में एंटोनिया केबरल के साथ हुआ । बाद में अकबर का रुचि धर्म और मीमांसा के प्रति जगी ,और अकबर ने फादर जुलियान फरेरा से ईसाई धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त की। अकबर के कुछ प्रश्न थे तब उसने 1580 में दो पुर्तगाली पादरी  रेस्कलफो एक्वाविवा और एंटोनिया मॉनसेट को अपने दरबार फतेहपुर सिकरी बुलाया जो 1583 में वापस लौटा। फिर अकबर ने दोबारा 1590 में पुर्तगाली पादरी को बुलाया जो 1593 में लौटा और फिर अकबर ने तीसरी बार 1595 में पुर्तगाली पादरी को कुछ धार्मिक प्रश्न हेतु बुलवाया था। फिर अकबर एवं उनके पुत्र सलीम (जहांगीर ) ने ईसाई धर्म के प्रति आदर व्यक्त की परंतु पुर्तगाली धर्म परिवर्तन करने में नाकाम रहे।

2. जहांगीर और पुर्तगाली :-  अकबर की मृत्यु के बाद उसके पुत्र जहांगीर सम्राट बना जहांगीर ने ईसा मसीह के संरक्षक जेसुएट को पहचानने से इंकार कर दिया था परंतु धीरे-धीरे संबंध अच्छा होता गया और 1606 में फिर से जहांगीर ने ईसाइयों को समर्थन देने लगा। 1608 में आगरा में 20 दीक्षा स्थान आयोजित किए गए और पादरियों को पुर्तगाल जितनी ही कार्य करने की स्वतंत्रता दी गई । गलियों एवं सड़क मार्ग पर पूरे कैथोलिक रीति रिवाज के साथ चर्च के जुलूस को निकालने की अनुमति दी गई और चर्च के खर्चों और धर्ममानतरित लोगों की सहायता के लिए खजाने से नगद सहायता दी गई।

                जहांगीर का व्यवहार इस प्रकार था कि जेसुएट पादरी उसे इसाई मत में लाने के प्रति आश्वाशन हो उठे उसने ओल्ड एवं न्यू टेस्टामेंट तथा संत के जीवन के लिए धार्मिक विषयों के चित्रों के प्रति असाधारण रुचि दिखाई आगरा में जहांगीर का सिहासन के चारों ओर संतों की पेंटिंग बनाई गई।

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पुर्तगालियों का अंग्रेजों के प्रति शत्रुता और पुर्तगालियों का पतन

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