प्लासी का युद्ध :-
प्लासी का लड़ाई 23 जून 1757 ईस्वी को बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना और रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ईस्ट इंडिया कंपनी के सेना के बीच लड़ा गया। सिराज की सेना की संख्या लगभग 50000 थी तथा अंग्रेज की सेना की संख्या मात्र 3200 थी। परंतु सिराज के सेनापति मीर जाफर अंग्रेज के साथ मिले हुए थे जिस कारण सिराज की सेना का बड़ा हिस्सा इस युद्ध में भाग नहीं लिया। जब सिराजुद्दौला को यह बात पता चला कि उसके सेनापति मीर जाफर और दुर्लभ राय उसके साथ विश्वासघात कर रहा है तो वह वहां से जान बचाकर मुर्शिदाबाद भाग आया और वहां से अपनी पत्नी के साथ पटना चला गया किंतु कुछ समय बाद मीर जाफर के पुत्र ने सिराजुद्दोला की हत्या कर दी इस प्रकार अंग्रेज का षडयंत्र सफल रहा।
मीर जाफर एवं मीर कासिम तथा अंग्रेज :-
सिराजुद्दौला के बाद बंगाल का नवाब मीर जाफर को बनाया गया। क्योंकि प्लासी युद्ध से पूर्व अंग्रेजी गवर्नर क्लाइव ने मीर जाफर को नवाब बनाने का वायदा किया था । नवाब मीर जाफर ने कंपनी को मुक्त व्यापार करने की अनुमति प्रदान कर देता है और साथ ही कोलकाता के पास 24 परखन्ना की जमीनदारी भी अंग्रेजों को दे देता है। मीर जाफर को अंग्रेजी मित्रों द्वारा मिले समर्थन के लिए उसे भारी रकम अदा करना पड़ा मीर जाफर के अंग्रेज को हर्जाने के रूप में लगभग 17 लाख ₹50000 अदा किए
मीर जाफर के समक्ष समस्याएं :-
.मिदनापुर के राजा राम सिन्हा तथा पूर्णिया के अली खां जैसे जमींदारों ने उसे अपने शासक मानने से इनकार कर दिया।
.मीर जाफर को लगने लगा कि उसके अधिकारी दुर्लभ राय सेना को भड़काने की कोशिश कर रहा है। मीर जाफर को संदेह होने लगा कि जमींदारों को दुर्लभ राय विद्रोह करने के लिए उकसा रहा है परंतु दुर्लभ राय क्लाइव के शरण में था इसलिए वह उसको कुछ नहीं कर सका।
. मुगल शासक के पुत्र शाह आलम द्वितीय द्वारा बंगाल के शासक पर अधिकार करने का प्रयास।
. मीर जाफर के पुत्र मिरान के मृत्यु के बाद मिरान के पुत्र एवं मीर जाफर के दमाद (मीर कासिम) के बीच उत्तराधिकार का विवाद शुरू हो गया ।
. मिर जाफर के दमाद कासिम का पक्ष कोलकाता के नया गवर्नर वांसीटार्ट ने लिया और मिर जाफर के बाद मीर कासिम को नवाब बनाया गया।
मीर कासिम अलवर्दी खां के बाद सबसे योग्य शासक था वह अंग्रेजों की चाल को भलीभांति समझता था।इसलिए मीर कासिम ने सत्ता की प्राप्ति के बाद उसने दो महत्वपूर्ण कार्य किये।
1) मीर कासिम ने अपने अधिकारियों के साथ उसने नौकरशाही का पुनर्गठन किया और सैन्य कौशल क्षमता को बढ़ाने का प्रयास किया।
2) मीर कासिम ने अपनी राजधानी मुर्शिदाबाद से मुंगेर ले आया।
मुंगेर में अंग्रेज ने मीर कासिम से 1762 में संधि की और अंग्रेजों से ली जाने वाली चुंगी राशि को 9% तक रखी गई। परन्तु कोलकाता के काउंसिल ने इस संधि को अस्वीकार कर देता है। तब बंगाल के नवाब मीर कासिम भारतीय व्यापारियों को मुक्त कर व्यापार करने की अनुमति प्रदान कर दी। जिससे अंग्रेज कंपनी ने अपना अपमान माना और मीर कासिम को पराजित कर मीर जाफर को पुनः बंगाल के नवाब बना दिया। मीर कासिम को पराजित होकर पुनः बंगाल को हासिल करने का विचार करता है और वह अवध की ओर भाग आता है अवध के शासक शुजा-उद-दौला तथा मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के साथ एक संधि कर लेता है। मीर कासिम अवध शासक तथा मुगल शासक तीनों मिलकर एक गुट बनाता है। जिसके बाद 22 अक्टूबर 1764 को बक्सर का युद्ध शुरू होता है ।
बक्सर युद्ध :-
बक्सर युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को शुरू होता है जिसमें अंग्रेजी सेना का नेतृत्व हेक्टर मुनरो करता है। इसने बक्सर युद्ध में तीनों गुटों को पराजित कर देता है। युद्ध में पराजित होकर कासिम भाकर दिल्ली चला जाता है। इस बक्सर युद्ध के बाद क्लाइव 1765 ईस्वी में दूसरी बार बंगाल के गवर्नर बनकर लौटा परंतु क्लाइव के आने से पहले मिर जाफर की मृत्यु हो चुका था। तब उसने उसके बाद मीर जाफर के पुत्र निजामुदौला को अंग्रेजों ने बंगाल का नवाब बना दिया और उसके बाद उस से संधि कर ली।
क्लाइव ने 1765 में दो संधि की पहला मुगल शासक शाह आलम द्वितीय के साथ और दूसरा अवध के नवाब के साथ इलाहाबाद में की।
इलाहाबाद संधि 1765 :-
1 अवध के साथ संधि :-
. अवध के नवाब को इलाहाबाद एवं करा का क्षेत्र मुगल शासक शाह आलम द्वितीय को देना पड़ा।
. कंपनी को ₹5000000 युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में देने होंगे।
. बलवंत सिंह को बनारस की जमीनदारी दे दिया जाएगा लेकिन वह अवध के नवाब के अधीन होगा।
. जरूरत पड़ने पर कंपनी को सैन्य सहायता देने पड़ेंगे।
2 शाह आलम द्वितीय (मुगल शासक) के साथ संधि :-
शाह आलम द्वितीय और अंग्रेज के बीच संधि के अंतर्गत निम्न निर्णय लिए गए -
. शाह आलम द्वितीय कंपनी के संरक्षण में आ जाता है।
. मुगल शासक को इलाहाबाद और करा का क्षेत्र मिल जाता है ।
. मुगल शासक द्वारा कंपनी को बंगाल बिहार और उड़ीसा के दीवानी प्राप्त हुई । जिसके बदले कंपनी मुगल बादशाह को 2600000 रुपे का वार्षिक भुगतान करना निर्धारित रखा गया।
. बंगाल बिहार तथा उड़ीसा का निजामत (प्रशासनिक) कार्य संभालने के लिए कंपनी को मुगल शासक द्वारा 53 लाख रुपए दिए जाएंगे।
कंपनी को दीवानी मिल जाने के बाद नवाबों की शक्ति बंगाल में पूर्ण रूप से समाप्त हो गई। और इस प्रकार अंग्रेज ने बंगाल पर अपना विजय प्राप्त की।
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