पृथ्वी की उत्पत्ति (origin of the earth) : अद्वैतवादी/द्वैतवादी संकल्पना
पृथ्वी की उत्पत्ति (origin of the earth) व संकल्पना:-
1 अद्वैतवादी संकल्पना -
. लाप्लास की निहारिका परिकल्पना
. कांट की वायव्य राशि परिकल्पना
2 द्वैतवादी संकल्पना -
. चैम्बरलेन की ग्रहाणु परिकल्पना
. जेम्स जींस की ज्वारीय परिकल्पना
. रसेल के द्वैतारकवाद की संकल्पना
. ऑटो-शिमिड की अंतरतारक धूल परिकल्पना
1 अद्वैतवादी संकल्पना(Monistic concept) :-
इस संकल्पना के अनुसार सौरमंडल की उत्पत्ति एक ही वस्तु से हुई है इस संकल्पना में कांट की वायव्य राशि परिकल्पना और लाप्लास की निहारिका परिकल्पना महत्वपूर्ण है।
(a) कांट की वायव्य राशि परिकल्पना :-
जर्मन दार्शनिक कांट ने 1755 ईस्वी में न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम पर आधारित वायव्य राशि परिकल्पना का प्रतिपादन किया इसके अनुसार केंद्रापसारित बल (केंद्र से बाहर की ओर लगने वाली बल) के प्रयास से एक तप्त (गर्म) एवं गतिशील निहारिका से कई गोल छल्ले अलग हुए। जिसके बाद में या गोल छल्ला ठंडा होते गया। जिससे सौरमंडल के विभिन्न ग्रहों का निर्माण हुआ। पृथ्वी भी इस विभिन्न छल्ले टुकड़ों में से एक है। साक्ष्य हेतू कांट ने गणित के नियमों का प्रयोग किया लेकिन यह नियम सौरमंडल की उत्पत्ति के यह परिकल्पना का पालन नहीं करता था। इसलिए यह परिकल्पना अत्यधिक मान्य साबित नही हुआ ।
(b) लाप्लास की निहारिका परिकल्पना :-
फ्रांसीसी विद्वान लाप्लास ने 1796 ईस्वी में कांट के परिकल्पना को संशोधित करते हुए बताया कि विशाल तप्त निहारिका से पहले एक ही तक छल्ला बाहर निकला और बाद में यह 9 छल्ले में विभाजित हो गया। लेकिन कांट के अनुसार तप्त निहारिका से ही 9 छल्ले निकले थे।जबकि लाप्लास के अनुसार तप्त निहारिका से केवल एक ही छल्ले निकले थे लेकिन बाद में यह छल्ला 9 छल्ले में बट गया। यह सभी 9 छल्ले पितृ छल्ले के चारों ओर घूमने लगे बाद में यह धीरे-धीरे ठंडा होते गए जिससे ग्रहों का निर्माण होता गया।
2 द्वैतवादी संकल्पना (Bi- parental hypothesis) -
द्वैतवाद संकल्पना अद्वैतवादी संकल्पना के विपरीत विचारधारा में था। इस संकल्पना के अनुसार ग्रह की उत्पत्ति दो तारों के संयोग से मानी जाती है। इसलिए इस संकल्पना को बाई पैरेंटल हाइपोथेसिस भी (Bi- parental hypothesis) कहते हैं।
(a) चैम्बरलेन व मोल्टन की ग्रहाणु परिकल्पना :-
यह अद्वैतवाद संकल्पना है जिसका प्रतिपादन चैम्बरलेन एवं मोल्टन ने 1950 ईस्वी में किया था। इनके अनुसार ग्रहों का निर्माण तप्त गैसीय निहारिका से ना होकर बल्कि ठोस पिण्ड से हुआ है। प्रारंभ में ब्रह्मांड में दो विशाल तारे थे जिसमें से एक सूर्य हैं और दूसरा अन्य भ्रमणसील तारा था। जब यह अन्य भ्रमणसिल तारा सूर्य के निकट पहुंचता है तो दोनों के बीच आकर्षण शक्ति उत्पन्न होती है। तब सूर्य के धरातल से असंख्य कण निकल कर अलग-अलग हो गए जो आपस में संगठित हुआ जिससे पृथ्वी एवं अन्य ग्रहों की उत्पत्ति हुई।
(b) जेम्स जींस एवं जेफरीज की ज्वारीय परिकल्पना:-
इस परिकल्पना का प्रतिपादन जेम्स जींस एवं जेफरीज ने 1919 ईस्वी में किया था। इस परिकल्पना की उत्पत्ति के संबंध में इसे पर्याप्त समर्थन प्राप्त है। इसके अनुसार सौरमंडल का निर्माण सूर्य एवं एक अन्य तारों के संयोग से हुआ। सूर्य के निकट जब अन्य तारे आने लगे तब सूर्य का कुछ ज्वारीय भाग उद्भेदन के कारण फिलामेंट के रूप में खींच गया तब यह बाद में टूटकर सूर्य के चक्कर लगाने लगे। यह फिलामेंट सौरमंडल के विभिन्न ग्रह की उत्पत्ति के कारण बना जिनमें पृथ्वी भी शामिल है।
(c) रसेल के द्वैतारकवाद की संकल्पना :-
यह सिद्धांत जींस एवं जेफरीज की परिकल्पना में ही एक प्रकार के संशोधन है, रसेल ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन सूर्य और ग्रहों के वर्तमान दूरी तथा ग्रहों के वर्तमान कोणीय आवेग की अधिकता जैसी समस्याओं के समाधान हेतु किया। जो जींस एवं जेफरीज की ज्वारीय परिकल्पना में प्रमाणित नहीं हो पा रही थी।
(d) ऑटो-शिमिड की अंतरतारक धूल परिकल्पना :-
रूसी वैज्ञानिक ऑटो-शिमिड द्वारा 1943 ईस्वी में दी गई इस परिकल्पना में ग्रहों की उत्पत्ति धूल कणों एवं गैसों द्वारा मानी गई है। उनके अनुसार जब सूर्य आकाशगंगा के करीब से गुजर रहा था तब अकाशगंगा ने अपनी आकर्षण शक्ति से गैसों के मेध एवं धूल-कण को अपनी ओर आकर्षित किया जो सामूहिक रूप से सूर्य की परिक्रमा करने लगे इन्हीं धूल कणों के संगठित व घनीभूत होने से पृथ्वी का एवं अन्य ग्रहों का निर्माण हुआ।
(e) फ्रेड होयल व लिटिलटन की अभिनव तारा परिकल्पना ( Supernova Hypothesis ) :-
अपनी पुस्तक Nature of the Universe में 1939 ई . में उन्होंने नाभिकीय भौतिकी से सम्बंधित सिद्धांत देते हुए जीन्स की परिकल्पना में संशोधन किया तथा बताया कि ग्रहों की उत्पत्ति में दो नहीं बल्कि तीन तारों की भूमिका रही है सूर्य , उसका साथी तारा तथा पास आता हुआ एक अन्य तारा । इस सिद्धांत के अनुसार , ग्रहों का निर्माण सूर्य से न होकर उसके साथी तारे के विस्फोट से हुआ । इनका सिद्धांत ग्रहों की आपसी दूरी , सूर्य से उनकी दूरी , ग्रहों में कोणीय संवेग की अधिकता एवं ग्रहों का सूर्य की तुलना में अधिक घनत्व की व्याख्या करने में सर्वाधिक समर्थ है । किन्तु , इस परिकल्पना से ग्रहों व उपग्रहों के आविर्भाव का संतोषजनक हल नहीं निकल पाया ।
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