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   आंग्ल मैसूर युद्ध 

पृष्ठभूमि

. हैदर अली के शासन के पहले मैसूर विजयनगर साम्राज्य के अंतर्गत आता था लेकिन तालीकोटा के प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध में विजय नगर साम्राज्य का पतन हो गया । एयर मैसूर विजयनगर से अलग हो गया तथा इस पर वोडेयार वंश की सत्ता स्थापित हो गई ।

. वोडेयार वंश का शासन काल 1734 ईस्वी से 1766 ईस्वी तक रहा इस वंश के अंतिम शासक चिक्का कृष्णराज द्वितीय था लेकिन इस के शासनकाल में वास्तविक सत्ता दो मंत्री भाइयों देवराज एवं नंजराज के हाथों में था ।

.हैदर अली इनके साम्राज्य में सैनिक था, लेकिन नंजराज हैदर अली के बहादुरी से प्रभावित होकर उसे 1755 में डिंडीगुल(तमिलनाडु) का फौजदार (कमांडर) पद पर नियुक्ति कर दिया।

. डिंडीगुल में ही हैदर अली फ्रांसीसीयों की सहायता से शस्त्रागार स्थापित किए एवं अपने सैनिकों को फ्रांसीसी सेनापति से प्रशिक्षण दिलवाया।

.  1759 में मराठों ने मैसूर पर जब आक्रमण किया तब हैदर अली ने मैसूर को मराठों से सुरक्षित बचा लिया ।

. इस वजह से खुश होकर नंजराज हैदर अली को मुख्य सेनापति बना देता है, लेकिन 1760 में हैदर अली ने नंजराज की हत्या कर सारा शासन अपने कब्जे में कर लेता है और उसके बाद 1761 में हैदर अली मैसूर का वास्तविक शासक बना।

. 1767 में आंग्ल मैसूर युद्ध की शुरुआत होती है। 

. आंग्ल मैसूर युद्ध के शुरू होने का प्रमुख कारण यह था कि अंग्रेज और हैदर अली दोनों ही अपने-अपने साम्राज्य का विस्तार करने में उत्सुक थे। जिससे दोनों एक दूसरे को प्रतिद्वंदी मानने लगे।


(1) प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध (1767-1769) :-

प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध अंग्रेजों के आक्रमक नीति या रवैया के परिणाम था।

. अंग्रेजों ने 1766 में हैदराबाद के निजाम के साथ संधि कर ली और अंग्रेजों ने निजाम को सामरिक सहायता देकर मैसूर पर आक्रमण करने के लिए उकसाया।

. उस समय हैदर अली मराठों के आक्रमण का सामना कर रहा था लेकिन अंग्रेजों के दुर्भावनापूर्ण रवैया को देखकर उसने पहले अंग्रेज को पाठ पढ़ाने का निर्णय लिया ।

. और फिर हैदर अली ने मराठो एवं निजाम से संधि कर करके अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया।

. लेकिन 1767 में संगम एवं तिरुवन्नामलई नामक स्थान पर हैदर अली और निजाम को अंग्रेजों ने पराजित कर दिया। 

.अवसरवादी निजाम ने फिर अपना पाला बदला और अंग्रेजों के साथ संधि कर ली।

.  हैदर अली ने इस धोखे का सही जवाब देते हुए उसने अंग्रेजों पर फिर से आक्रमण कर दिया एवं 1769 ईस्वी तक आते-आते हैदर अली ने अंग्रेजों को मद्रास तक ढकेल दिया।

. अंग्रेजी युद्ध से हार मानकर हैदर अली के साथ 4 अप्रैल 1769 को मद्रास की संधि कर ली ।

         संधि के तहत अंग्रेज-

(a) बंदियों को छोड़ दिया गया 

(b) दोनों एक दूसरे के क्षेत्र पर कब्जा छोड़ दिए।

(c) युद्ध के दौरान हुई हानि का जुर्माना अंग्रेज को भरना होगा।

(d) किसी भी विपत्ति के समय दोनों एक दूसरे का सहयोग करेंगे।

आंग्ल मैसूर युद्ध : हैदर अली और टीपू सुल्तान


    (2)  द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1780-1784) :-

.1771 ईस्वी में मराठों ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया तब मद्रास की संधि के शर्त के अनुसार अंग्रेजों को हैदर अली की सहायता करना चाहिए था लेकिन अंग्रेजों ने कोई रुचि नहीं दिखाई।

. हैदर अली अंग्रेजों के इस विश्वासघात को देखते हुए मराठो एवं निजाम के साथ त्रिगुट संधि कर ली।

. जुलाई 1780 में हैदर अली ने कर्नाटक पर आक्रमण कर आकर्ट पर अधिकार कर लिया।

. हैदर अली द्वारा अंग्रेज को मिली करारी हार के बाद 1780 में बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने कूटनीति का सहारा लिया और निजाम को गुंटुर देकर उसने निजाम को हैदर अली से अलग कर दिया।

. 1780 में नए गवर्नर जनरल एयरपोर्ट ने हैदर अली को अकेले पढ़ने पर कई जगह पर परास्त हुआ लेकिन हैदर अली ने सितंबर 1782 में आयरकूट को पराजित कर दिया।

7 दिसंबर 1782 को हैदर अली की मृत्यु हो गई एवं उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने यह युद्ध जारी रखा।

लेकिन लंबे समय से हो रहे युद्ध के देखते हुए दोनों पक्षों ने मंगलूर की संधि कर ली एवं दोनों को अपने अपने क्षेत्र वापस लौटा दिए गए।

 (3) तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध (1790 - 1792) :- 

. यह युद्ध अंग्रेजों के छल के कारण हुआ था।

. 1788 में कंपनी ने हैदराबाद के निजाम को फिर से टीपू सुल्तान के खिलाफ युद्ध करने के लिए पत्र लिखा।

. टीपू सुल्तान ने इसे संधि का उल्लंघन समझा और उसने 1789 में त्रवंकोर पर आक्रमण कर दिया।

. 1790 में लॉर्ड कॉर्नवालिस ने मराठों और निजाम के साथ संधि कर ली। जिससे टीपू सुल्तान अकेले पड़ गया और उसे कहीं जगह पर पराजय का शिकार होना पड़ा ।

. टीपू सुल्तान ने बहादुरी से युद्ध किया लेकिन अंग्रेजों की सामरिक स्थिति मजबूत होने के कारण टीपू सुल्तान को आत्मसमर्पण करना पड़ा ।

           और मार्च 1793 में श्रीरंगपट्टनम की संधि से तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध की समाप्ति हुई । 

            इस संधि के अनुसार

 (a) टीपू सुल्तान के प्रदेश का आधा हिस्सा अंग्रेजों को देना पड़ा। इस हिस्सा को अंग्रेज निजाम और मराठा ने तीनों बराबर भागों में बांट लिया।

(b) टीपू को युद्ध हानि के रूप में अंग्रेज को 3 करोड रुपए हर्जाने के रूप में भरने पड़े।


 (4) चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध (मार्च 1799- मई 1799 तक) :- 

. श्रीरंगपट्टनम संधि के अपमानजनक शर्ते टीपू सुल्तान को बर्दाश्त नहीं हो रहा था। इसलिए टीपू सुल्तान ने पुनः युद्ध करने की योजना बनाई।

. टीपू को भारतीय राज्य से सहयोग की कोई आशा नहीं थी तब उसने अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मदद पाने की दिशा में प्रयास किया।

. टीपू सुल्तान ने भारत में फ्रांसीसी कंपनी से संपर्क किया, नेपोलियन को पत्र भेजा और उसने कुस्तुनतुनिया, अफगानिस्तान तथा मोरिसस के शासकों को भी मदद के लिए पत्र भेजा।

.  टीपू सुल्तान ने अपनी सेना को फिर से संगठित कर फ्रांसीसी पद्धति पर उसने अपनी सेना को प्रशिक्षण भी दिलवाया ।

.और टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया लेकिन अंग्रेजों द्वारा हुई दो घमासान युद्ध में टीपू सुल्तान की पराजय हुई। और टीपू युद्ध करते-करते बहादुरी से अपने दुर्ग की रक्षा करते हुए मारा गया।

   युद्ध के बाद टीपू के सारा खजाना पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।


अंग्रेजों का बंगाल विजय : अलीनगर संधि/ सिराजुद्दौला और अंग्रेज

https://www.missionupsce.in/2021/05/British-conquest-of-Bengal.html


https://www.missionupsce.in/2021/03/mugal-samrajya.html

मुगल साम्राज्य short notes (Important for upsc prelims &  mains )

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