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सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन : ब्रह्म समाज/आर्य समाज/राजा राममोहन राय

 सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन

     19वीं सदी के सुधार आंदोलन किसी भी धर्म और समाज से जुड़ा हो सभी शिक्षा पर विशेष बल दिया इस सुधार आंदोलन में व्यक्ति की स्वतंत्रता तथा समानता पर बल दिया गया एवं विधवा पुनर्विवाह, सती प्रथा का अंत, पर्दा प्रथा को अंत करने के लिए विरोद किया गया ।

           इस सामाजिक सुधार आंदोलन में अनेक नेता ने अहम भूमिका निभाई ।

  1) राजा राममोहन राय के ब्रह्म समाज :- 

 . ब्रह्म समाज की शुरुआत राजा राममोहन राय ने की थी राजा राममोहन राय को राजा की उपाधि मुगल बादशाह अकबर द्वितीय ने दी थी ।

 . राजा राममोहन राय को आधुनिक भारत के जनक कहा जाता है।  

 . राजा राममोहन राय ने ब्रह्म सभा की स्थापना 20 अगस्त 1828 में की थी। लेकिन बाद में ब्रह्म सभा का नाम बदलकर ब्रह्म समाज में परिवर्तित कर दिया गया ।

 . ब्रह्म समाज के अनुसार ईश्वर एक है और वह सर्वव्यापी , सर्व शक्तिमान एवं अमर है ब्रह्म समाज मूर्ति पूजा पर विश्वास नहीं करते थे ।

1833 में ब्रिस्टल में राजा राममोहन राय के निधन हो जाने से ब्रह्म समाज को गहरा आघात हुआ। राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज का बागडोर रविंद्र नाथ टैगोर के पिता महर्षि देवेंद्र नाथ टैगोर ने संभाली ।

 . राजा राममोहन राय ने 1820 में परिसेप्स ऑफ जीसस नामक पुस्तक लिखी इसके अलावा उन्होंने गिफ्ट-टू- मोनोथिज्म या एकेश्वरवाद का उपहार की रचना की।

       राजा राम मोहन राय द्वारा समाज में किए गए परिवर्तन निम्न प्रकार है।

 (a) मूर्ति पूजा का विरोध -

 राजा राममोहन राय सिर्फ ब्रह्म को ही ईश्वर मानते थे उनका कहना था कि ईश्वर एक है जो सर्वशक्तिमान, सर्व व्यापक एवं अमर है। इसलिए वह मूर्ति पूजा पर विश्वास नहीं करते थे। 

 (b) बहुपत्नी एवं सती प्रथा का विरोध :- 

   राजा राम मोहन राय द्वारा किए गए सुधार में सती प्रथा एक महत्वपूर्ण सुधार था सती प्रथा में जिस स्त्रियों का पति की मृत्यु हो गया उसे समाज में रहने का कोई हक नहीं था। और उस स्त्रियों को पति के साथ में अग्नि को धारण करना पड़ता था। अगर कोई महिलाएं ऐसा नहीं करती थी तो उसे समाज द्वारा जबरदस्ती जलाया जाता था। 

          इस प्रथा को राजा राममोहन राय ने जमकर विरोध किया और इस हिंदू सती प्रथा को रोकने के लिए उन्होंने सरकारों से अपील की फिर 1829 में लॉर्ड विलियम बेंटिक ने एक कानून बनाकर इस प्रथा को गैरकानूनी घोषित कर दिया और कहा गया कि स्त्रियों को जबरन चलाना अपराध है और ऐसा करने पर उस व्यक्ति को दंड मिलगा। 

 (c) बाल विवाह का विरोध :- 

समाज सुधारकों ने मिलकर बाल विवाह का विरोध किया परिणामस्वरूप 1872 में 'नेटिव मैरिज एक्ट' पारित किया गया जिसके अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं को विवाह करना वर्जित किया गया। लेकिन यह कानून उतना प्रभावी नहीं हो सका, अंत में पारसी धर्म सुधारकों ने 1891 में सम्मति आयु अधिनियम पारित किया जिसमें 12 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं के विवाह पर रोक लगा दी गई ।

      फिर हरविलास शारदा के अथक प्रयास से 1930 में 'शारदा एक्ट' पारित हुआ जिसमें 14 वर्ष से कम उम्र की कन्याओं एवं 18 वर्ष से कम उम्र के बालक के विवाह को अवैध घोषित कर दिया गया।

 (d) विधवा विवाह का समर्थन :-

   राजा राममोहन राय द्वारा विधवा विवाह को प्रोत्साहित किया गया । क्योकि उनका कहना था कि जिस स्त्री का पति मर चुका हो उसे आगे का जिंदगी दुसरो के साथ जीने का हक मिलना चाहिए।

 (e) शिक्षा का प्रचार प्रसार :-

 राजा राममोहन राय ने 1817 में हिंदू कॉलेज की एवं 1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना की जिसमें भौतिक विज्ञान एवं सामाजिक विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।

सामाजिक व धार्मिक आन्दोलन के वस्तुनिष्ठ प्रश्न। :- ⬇️⬇️

https://www.missionupsce.in/2021/07/social-religious.html


2) देवेंद्रनाथ टैगोर का ब्रह्म समाज :-

 . राजा राममोहन राय की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज की बागडोर रविंद्रनाथ टैगोर के पिता देवेंद्रनाथ टैगोर ने 1842 से कि ।

 . देवेंद्र नाथ टैगोर ने तत्वबोधिनी सभा का 1839 में स्थापना की थी।

 .  देवेंद्र नाथ टैगोर ने विधवा विवाह का समर्थन, स्त्री शिक्षा पर जोर, बहू पत्नी प्रथा का विरोध किया ।

3) केशव चंद्र सेन का ब्रह्म समाज :-

 . देवेंद्र नाथ टैगोर के बाद ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशवचंद्र सेन ने किया। केशवचंद्र सेन के उदारवादी विचारधारा के कारण ब्रह्म समाज में पहली फुट पड़ी।

 . क्योंकि ब्रह्म समाज के सभा में ईसाई, मुस्लिम, पारसी धर्म के पुस्तक पढ़ने जाने लगा। किंतु इस उदारवादी नीति के कारण देवेंद्रनाथ टैगोर और केशव चंद्र सेन में मतभेद हो गया ।

 . जिस कारण 1865 में केशवचंद्र सेन को ब्रह्म समाज से बर्खास्त कर दिया गया।

 . बर्खास्त होने के बाद केशवचंद्र सेन ने नवीन ब्रह्म समाज का गठन किया ।

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 4) प्रार्थना समाज :-

 . 1867 में मुंबई में केशवचंद्र सेन के सहयोग से आत्माराम पांडुरंग ने प्रार्थना समाज की स्थापना की ।

 . ऐसा माना जाता है कि प्रार्थना समाज ब्रह्म समाज का ही शाखा था जिसका प्रभाव क्षेत्र सीमित था ।

 . प्रार्थना समाज में अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों की सहभागिता थी जिनमें महादेव रानाडे प्रमुख थे।

 .  महादेव रानाडे को पश्चिम भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है ।

 . रानाडे ने पूना सार्वजनिक सभा का गठन 1870 में किया जिस कारण इन्हें महाराष्ट्र का सुकरात कहा जाता है ।

 . रानाडे ने 1884 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की जो बाद में पुणे फ़र्गसन कॉलेज कहालाया ।

सामाजिक धार्मिक सुधार आंदोलन : ब्रह्म समाज/आर्य समाज/राजा राममोहन राय

5) आर्य समाज :-

 . स्वामी दयानंद सरस्वती ने मुंबई में 1875 ईस्वी में आर्य समाज की स्थापना की ।

 . दयानंद सरस्वती ने वेदों की ओर लौटो का नारा दिया और छुआछूत, जाति भेद, बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा पुनर्विवाह एवं अंतरजातीय विवाह का समर्थन भी किया।

 . स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा शुद्धि आंदोलन चलाया गया जिसके अंतर्गत हिंदू धर्म का परित्याग कर अन्य धर्म को अपनाने वाले लोग को पुनः हिंदू धर्म में वापसी करने का द्वार खोल दिया गया ।

 . आर्य समाज ने गौ रक्षा आंदोलन चलाया था तथा गौरक्षणी सभा की स्थापना की ।

 . दयानंद सरस्वती ऐसे प्रथम समाज सुधारक थे जिन्होंने छुद्र तथा स्त्री को भी पढ़ने तथा उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार देने के लिए आंदोलन किए थे। 

 . दयानंद सरस्वती का बचपन का नाम मूल शंकर था एवं इनके प्रमुख पुस्तक पंच महायज्ञ विधि(1874)  पाखंड खंडन(1866) अद्वैत मत का खंडन (1877) है।

 . ऐसा माना जाता है कि स्वराज शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम दयानंद सरस्वती ने किया था।

     आर्य समाज के कुछ प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार है।

(a) वेद ही ज्ञान के स्रोत है अतः वेद का ज्ञान आवश्यक है।
(b) मूर्ति पूजा का खंडन।
(c) स्त्री शिक्षा का प्रोत्साहन।
(d) छुद्र एवं स्त्री को वेद पढ़ने के लिए आंदोलन।
(e) बाल विवाह का विरोध।
(f) कर्म, पुनर्जन्म और आत्मा को बारंबार जन्म लेने का विश्वास।
(g) हिंदी एवं संस्कृत भाषा का प्रसार।

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