साइमन कमीशन - 1927
पृष्ठभूमि -
भारत शासन अधिनियम 1919 को पारित करते समय ब्रिटिश सरकार ने यह घोषणा की थी कि वह 10 वर्ष के पश्चात समाज सुधार के समीक्षा करेंगे किंतु नवंबर 1927 में उसने एक आयोग की नियुक्ति करने की घोषणा कर दी। जिसका नाम भारतीय विधिक आयोग रखा गया। इस आयोग के अध्यक्ष सर जॉन साइमन को बनाया गया था, इस आयोग में सभी सातों सदस्य ब्रिटिश थे।
भारतीय विधिक आयोग या साइमन आयोग :-
यह साइमन आयोग सात ब्रिटिश सांसदों का समूह था जिसका गठन 8 नवंबर 1927 को भारत में संविधान सुधार के अध्ययन के लिए किया गया था। इनका मुख्य कारण था मोंटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार की जांच करना तथा वर्तमान सरकार व्यवस्था, शिक्षा के प्रसार तथा प्रतिनिधि संस्था का अध्ययन करके उसका रिपोर्ट देना।
साइमन कमीशन 1927 एक्ट के संबंध में प्रमुख बिंदु निम्न है -
. भारत शासन अधिनियम 1919 के अनुसार भारत में संवैधानिक सुधारों के संबंध में ब्रिटिश सरकार द्वारा इसका गठन 10 वर्ष बाद यानी 1929 में होना था, परंतु ब्रिटेन के तत्कालीन सत्ता दल कंजरवेटिव पार्टी ने अपना सारा श्रेय लेने के लिए इसे 2 वर्ष पूर्व ही 1927 में इस आयोग का गठन किया।
. साथ ही कंजरवेटिव पार्टी के तत्कालीन सेक्रेटरी ऑफ स्टेट 'लार्ड बर्फनहेड' का मानना था कि भारतीय लोग स्वयं को संवैधानिक सुधार हेतु योजना बनाने में असक्षम है। इसलिए साइमन कमीशन की नियुक्ति करना आवश्यक है।
. भारत में साइमन कमीशन का विरोध किया गया जिसका निम्न कारण था।
(a) भारत को इस कमीशन का सदस्य नहीं बनाया गया।
(b) तथा भारत में स्वशासन संबंध निर्णय को विदेशियों द्वारा संचालन होना।
पुलिस द्वारा इस विरोध का दमन :-
पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाई गई। लखनऊ में जवाहरलाल नेहरू तथा गोविंद बल्लभ पंत को बुरी तरह पीटा गया। वहीं लाहौर में लाला लाजपत राय पर पुलिस की लाठियां से आई चोटों के कारण 17 नवंबर 1928 को उनका मृत्यु हो गया।
साइमन कमीशन पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया :-
. कांग्रेस के मद्रास अधिवेशन ( दिसंबर 1927) में एम.ए. अंसारी की अध्यक्षता में इस कमीशन को बहिष्कार करने का निर्णय लिया गया ।
. किसान मजदूर पार्टी, लिबरल फेडरेशन, हिंदू महासभा तथा मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के साथ मिलकर कमीशन का बहिष्कार करने का निर्णय लिया।
. इसी बीच मोतीलाल नेहरू द्वरा पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित करा लिया गया।
. साइमन कमीशन का जनताओं द्वरा भी विरोध किया गया।
. 3 फरवरी 1928 को जब साइमन कमीशन बंबई पहुंचा तो पूरे भारतवर्ष में हड़ताल व विरोध किया गया। तथा जहां भी गए वहां उन्हें काले झंडे तथा साइमन गो बैक का नारे झेलने परे।
. केंद्रीय विधानसभा के भारतीय सदस्य भी इस कमीशन का स्वागत करने से इंकार कर दिया।
नेहरू रिपोर्ट :-
1928 में तत्कालीन भारत सचिव लार्ड विरकनहैड ने भारतीयों को ऐसे संविधान के निर्माण का चुनौती दी जो सभी गुणों एवं दलों को मान्य हो।
. भारतीय ने इस चुनौती को स्वीकार कर विभिन्न विचारधारा के नेता ने एक सर्वदलीय सम्मेलन का आयोजित किया ।
. इस सम्मेलन का अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की, तथा इसमें अली इमाम, सुभाष चंद्र बोस, मंगल सिंह, शोएब कुरैशी आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
. अगस्त 1928 में इस समिति का सम्मेलन (सर्वदलीय सम्मेलन) में एक रिपोर्ट पेश की जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है ।
. इस रिपोर्ट के सभी शर्तों को स्वीकार कर लिया गया तथा भारत को डोमिनियन स्टेट का दर्जा दिए जाने के पर बहुमत प्राप्त हुआ।
. लेकिन भारतीय के एक वर्ग की आपत्ति थी वह भारत के डोमिनियन के जगह पर पूर्ण स्वतंत्रता की समर्थन कर रहे थे।
. लखनऊ में डॉक्टर अंसारी की अध्यक्षता में पुनः सर्वदलीय सम्मेलन हुआ जिसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया।
नेहरू रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :-
. भारत को पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्य का दर्जा मिले तथा उसका स्थान ब्रिटिश शासन के अधीन अन्य उपनिवेश के समान हो।
. भाषाई आधार पर प्रांतों का गठन हो ।
. संप्रदायिक निर्वाचन प्रणाली को समाप्त कर दिया जाए जो अब तक के संवैधानिक सुधारों का आधार था, तथा इसके स्थान पर संयुक्त निर्वाचन पद्धति की व्यवस्था हो।
.19 मौलिक अधिकारों की मांग की गई जिसमें महिलाओं का सम्मान अधिकार, संघ बनाने की स्वतंत्रता तथा व्यस्क मताधिकार जैसी मांगे शामिल था।
. केंद्र तथा राज्यों में उत्तरदाई सरकार की स्थापना की जाए ।
. मुसलमानों को धार्मिक एवं सांस्कृतिक हितों की पूर्ण संरक्षण।
. सिंध को मुंबई से पृथक कर एक पृथक प्रांत बनाया जाए।
. देसी राज्यों के अधिकारों एवं विशेष अधिकारों को सुनिश्चित किया जाएं।
. भारत में एक प्रतिरक्षा समिति उच्चतम न्यायालय तथा लोक सेवा आयोग की स्थापना की जाए।
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