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पारिस्थितिकी तंत्र पर मानवीय प्रभाव (human impact on the ecosystem):-

       पारिस्थितिकी तंत्र जीवो के अनेक समुदाय तथा वातावरण या पर्यावरण के बीच पारस्परिक संबंध को दर्शाता है, लेकिन मनुष्य ने विशेष कर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद मनुष्य द्वारा पर्यावरण के विरुद्ध किए गए कार्य से पारिस्थितिकी तंत्र में गहरा प्रभाव पड़ा है । मृदा प्रदूषण , मृदा क्षरण, ओजोन छिद्र, अम्लीय वर्षा, बढ़ते तापमान, ग्रीन हाउस प्रभाव आदि के कारण सभी जीवमंडलीय पारिस्थितिकी तंत्र तेजी से असंतुलित हो गए हैं। जिसके कारण अनेक जीव का विनाश हो चुका है, तो अनेक जी विनाश के कगार पर पहुंच चुके हैं। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम(UNEP) की रिपोर्ट के अनुसार विश्व में औसतन प्रतिदिन 50 प्रकार के जीवो का विनाश होता जा रहा है अतः पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण हेतु नवीन योजनाएं एवं नवीन चिंतन की आवश्यकता है। कई देशों ने इस दिशा में सराहनीय प्रयास किए हैं जिनमें भारत भी शामिल है ।

     पारिस्थितिकी तंत्र( ecosystem) के समस्या को कई तरह से देखा जा सकता है :- 

1) स्थलीय वातावरण से संबंधित समस्याएं :-

 इनके अंतर्गत वनों का विनाश, मृदा क्षरण, मृदा प्रदूषण, मृदा में लवणता या क्षरियता की वृद्धि इत्यादि समस्याएं शामिल है। पर्यावरणीय संतुलन के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में 60% एवं मैदानी क्षेत्र में 25% भाग में वनों का होना जरूरी है। अर्थात समग्र रूप से संपूर्ण स्थल के 33% स्थल भाग पर वन होना आवश्यक है जबकि वर्तमान में वैश्विक वन संसाधन आकलन - 2015 के अनुसार विश्व के 30.6% भूभाग पर वन है। और भारत में india state of Forest report - 2017 के अनुसार भारत में केवल 24.4% भूभाग पर वन है, जो स्थलीय वातावरण के प्रदूषण की अत्यधिक मात्रा बढ़ने को दर्शाता है।

2) वायुमंडलीय वातावरण से संबंधित समस्याएं :- 

 वायुमंडलीय वातावरण से संबंधित समस्याएं निम्न प्रकार के हैं ।

 a) ओजोन छिद्र :-

 समताप मंडल में पाई जाने वाली ओजोन परत को जीवन रक्षक छतरी कहते हैं क्योंकि यह सूर्य की पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करती हैं। ओजोन परत द्वारा सूर्य की 70 से 90% पराबैंगनी किरणों को रोक लिया जाता है। ओजोन परत में छिद्र सर्वप्रथम जॉब फॉरमेन द्वारा 1973 में अंटार्कटिका में देखा गया था।

      ओजोन परत में छिद्र होने का प्रमुख कारण क्लोरीन है। वैज्ञानिक के अनुसार क्लोरीन के अणु ओजोन के एक लाख अणु को तोड़ सकता है। क्लोरीन की उत्पत्ति क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFC), हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (HFC), मिथाइल क्लोरोफॉर्म इत्यादि से होता है। रेफ़्रिजरेटर, एयर कंडीशनर (AC), स्कैनर ,प्लास्टिक से उत्सर्जित क्लोरीन ओजोन परत को अत्यधिक क्षति पहुंचाई है। जेट विमान से निकले नाइट्रोजन ऑक्साइड के कारण भी ओजोन परत में छिद्र की समस्या उत्पन्न हुई है।

b) अम्लीय वर्षा :- 

वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड , क्लोरीन तथा फ्लोरीन जैसे हैलोजन पदार्थों के मिलने से वर्षा में अम्लीयता की मात्रा बढ़ी है। वर्षा में सल्फ्यूरिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल, हाइड्रोक्लोरिक अम्ल आदि के मिश्रण से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

     जब वर्षा जल का PH मान 5 से कम हो तो वह अत्यंत हानिकारक होता है  इससे वनस्पति के क्लोरोफिल पर विपरीत प्रभाव पड़ता है फलतः प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया बाधित हो जाती है, जिस कारण पति पीले होने लगते हैं ।

 c) भूमंडलीय तापन :-

औद्योगिक क्रांति के बाद वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड(CO), मेथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन(CFC) ,हाइड्रोफ्लोरो कार्बन (HFC) आदि से ग्रीनहाउस गैस की मात्रा में तीव्रता से वृद्धि के कारण वातावरण प्रभावित हुआ है।

पारिस्थितिकी तंत्र पर मानवीय प्रभाव (human impact on the ecosystem)

3. जैविक वातावरण पर प्रभाव : -

पारिस्थितिक असंतुलन का सर्वाधिक प्रतिकूल प्रभाव जीवमंडल पर पड़ा है । UNEP के एक रिपोर्ट के अनुसार प्रतिदिन 50 जैविक प्रजातियाँ विलुप्त होने की श्रेणियों में आ रहे है । यह जैविक विनाश वनों के विनाश से भी संबद्ध है । IUCN भी ' रेड डाटा बुक ' के माध्यम से यह बताता है कि कौन से वन्य जीव खतरनाक स्तर पर है जिनका संरक्षण अति आवश्यक है । प्रेयरी भैस . सफेद हाथी . सफेद वाघ , दरयाई घोड़ा , चिम्पांजी , हल , डॉल्फिन , प्रवाल जीव आदि अत्यधिक संकटग्रस्त स्थिति में हैं । पुन : जैव - तकनीकी से उत्पन्न ट्रांसजेनिक बीजों एवं जीवों के कारण परंपरागत बीज व जीव क्रमश : विलीन होते जा रहे हैं । मानव की संख्या में अनियंत्रित वृद्धि तथा प्रकृति के अनियोजित व अनियत्रित दोहन से खाद्य - श्रृंखला प्रतिकूल रूप प्रभावित हुआ है ।


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पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) : पारिस्थितिकी तंत्र के घटक

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