बुद्ध का जीवन परिचय : बौद्ध धर्म, शिक्षाएँ एवं सिद्धांत,उपदेश के बारे में जानने के लिए click करे -
बौद्ध धर्म की शिक्षाएँ एवं सिद्धांत
• बुद्ध ने आम जनता की भाषा पालि में उपदेश दिये । उनके अनुसार सृष्टि दुःखमय , क्षणिक एवं आत्मविहीन है । वे ईश्वर एवं अपौरुषेय वेद की सत्ता को अस्वीकार करते हैं । बुद्ध ने जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था को अस्वीकार किया ।
• बुद्ध ने प्रतीत्यसमुत्पाद को संपूर्ण जगत पर लागू किया । महात्मा बुद्ध के अनुसार , एक वस्तु के विनाश के पश्चात् दूसरे की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक घटना के पीछे कार्य - कारण का संबंध है । कार्य - कारण का यही सिद्धांत ‘ प्रतीत्यसमुत्पाद ' के नाम से जाना जाता है ।
• बौद्ध ने निर्वाण प्राप्त करने को कहा अर्थात् इच्छाओं और तृष्णाओं से छुटकारा , जिससे जन्म - मरण के बंधन से मुक्ति मिले । निर्वाण का अर्थ है ' दीपक का बुझ जाना ' अर्थात् जीवन - मरण के चक्र मुक्त हो जाना ।
बौद्ध धर्म के त्रिरत्न -
● धम्म
● संघ
बौद्ध धर्म के चार आर्य सत्य
• दुःख
• दुःख समुदाय
• दुःख निरोध
• दुःख निरोधगामिनी प्रतिपदा
आष्टांगिक मार्ग
गौतम बुद्ध ने चार आर्य सत्य में दुःख निरोध का उपाय बताया । इसे ' दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा ' कहा जाता है । इसे ' मध्यमा प्रतिपदा ' या ' मध्यम मार्ग ' भी कहते हैं । उनके इस मध्यम प्रतिपदा में आठ सोपान हैं , इसलिये इसे आष्टांगिक मार्ग भी कहते हैं ।
इसके आठ सोपान निम्न हैं
1. सम्यक् दृष्टि - वस्तु के वास्तविक स्वरूप की समझ ।
2. सम्यक् संकल्प - लोभ , द्वेष व हिंसा से मुक्त विचार।
3. सम्यक् वाक् - अप्रिय वचनों का त्याग
4. सम्यक् कर्मात - सत्कर्मों का अनुसरण
5. सम्यक् आजीव - सदाचार युक्त आजीविका
6. सम्यक् व्यायाम - मानसिक / शारीरिक स्वास्थ्य
7. सम्यक् स्मृति - सात्विक भाव
8. सम्यक् समाधि - एकाग्रता
• बुद्ध के अनुसार आष्टांगिक मार्गों का पालन करने के उपरांत मनुष्य की भवतृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त हो जाता है ।
दस शील ।
बौद्ध धर्म में निर्वाण प्राप्ति के लिये सदाचार तथा नैतिक जीवन पर अत्यधिक बल दिया गया है । दस शीलों का अनुशीलन नैतिक जीवन का आधार है । इन दस शीलों को शिक्षापद भी कहा गया है , ये हैं ।
1. अहिंसा
2. सत्य
3. अस्तेय ( चोरी न करना )
4. अपरिग्रह ( किसी प्रकार की संपत्ति न रखना )
5. मद्य सेवन न करना
6. असमय भोजन न करना
7. सुखप्रद बिस्तर पर न सोना
8. आभूषणों का त्याग
9. स्त्रियों से दूर रहना ( ब्रह्मचर्य )
10. व्यभिचार आदि से दूर रहना ।
• गृहस्थों के लिये केवल 5 शील तथा भिक्षुओं के लिये 10 शील मानना अनिवार्य था ।
दर्शन -
अनीश्वरवाद - ईश्वरीय सत्ता में विश्वास नहीं ।
शून्यतावाद - संसार की समस्त वस्तुएँ या पदार्थ सत्ताहीन हैं ।
अनात्मवाद आत्मचेतना पर सर्वाधिक बल ।
क्षणिकवाद - संसार में कोई भी चीज स्थिर नहीं ।
हीनयान - महायान में अंतर
• हीनयान के प्रमुख संप्रदाय हैं - वैभाषिक तथा सौत्रान्तिक । स्थविरवादी , सर्वास्तिवादी तथा सम्मितीय हीनयान के अन्य उपसंप्रदाय हैं । बौद्ध धर्म के अंतर्गत सर्वास्तिवादियों की मान्यता थी कि फिनोमिना के अवयव पूर्णतः क्षणिक नहीं हैं , अपितु अव्यक्त रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं । महायान बौद्ध संप्रदाय के दो मुख्य भाग हैं- शून्यवाद या माध्यमिका एवं विज्ञानवाद या योगाचार ।
• हीनयान में बुद्ध महापुरुष के रूप में हैं ,महायान में देवता के रूप में स्थापित हो गए ।
• हीनयान में बुद्ध को प्रतीकों के रूप में दर्शाया गया है , जबकि महायान में मूर्तिपूजा शुरू हो गई ।
• हीनयान स्वयं के प्रयत्नों पर बल देता है , जबकि महायान गुणों के स्थानांतरण पर बल देता है ।
• हीनयान का आदर्श है- ' अर्हत पद की प्राप्ति ' जबकि महायान में ‘ बोधिसत्व ’ की परिकल्पना मौजूद है ।
बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का कारण :-
• जटिल दार्शनिक वाद-विवाद का ना होना।
• लोकभाषा पाली में उपदेश देना ।
• बौद्ध धर्म को राजकीय संरक्षण प्राप्त होना।
• सामाजिक समानता का सिद्धांत।
• बौद्ध धर्म का लचीलापन, इसमें मध्यम मार्ग का रास्ता बताया गया था।
• समय-समय पर बौद्ध संगति ओ का आयोजन l
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https://www.missionupsce.in/2022/01/Buddhism-baudh-dharm.html
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