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              न्यायपालिका

           भारत की न्यायपालिका , न्यायपालिका का कार्य ,न्यायपालिका की संरचना, न्यायपालिका को पद से हटाना, कोलेजियम प्रणाली

 . भारत में न्यायपालिका का गठन एक स्वतंत्र व्यवस्था या प्रणाली के रूप में किया गया है।

 .न्यायपालिका के स्वतंत्र होने का मौलिक उद्देश्य जनता के अधिकारों को संरक्षित किए जाने से हैं जो की विधि के शासन का एक मूल आधार है, और विधि का शासन प्रजातांत्रिक व्यवस्था का एक मूल आधार है।

 .न्यायपालिका के स्वतंत्र होने का आशय यह है कि सरकार के अन्य दो अंगो (विधायिका और कार्यपालिका) द्वारा न्यायिक कार्यवाही में कोई अनावश्यक हस्तक्षेप ना किया जाए, ताकि न्यायपालिका बिना किसी पश्चाताप के निर्णय को प्राप्त कर सके।

 न्यायपालिका के स्वतंत्र होने के साथ-साथ न्यायपालिका के जबावदेह होने पर भी बल दिया जाता है। न्यायपालिका को संविधान, संसदीय परंपराओं, सिद्धांत और आम जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिए है।

न्यायपालिका की संरचना।

 (1)उच्चतम न्यायालय(supreme Court)

 भारत में उच्चतम न्यायालय की संख्या कुल 34 है जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और 33 अन्य न्यायाधीश है ।

. भारत में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा कोलेजियम प्रणाली के तहत की जानी है।

 .उच्चतम न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के आधार पर की जानी है।

               सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अहर्ताएं ।

     - वह भारत का नागरिक हो।

     -  वह कम से कम 5 वर्षों के लिए उच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो।

     - वह कम से कम 10 वर्षों के लिए किसी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता हो।

 (2) उच्च न्यायालय(high court)

 .उच्च न्यायालय का एक मुख्य न्यायाधीश होगा एवं अन्य न्यायाधीश होंगे जिसकी संख्या राष्ट्रपति द्वारा की तय किया जाएगा।

 .भारत में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा कोलेजियम प्रणाली के तहत की जानी है।

       उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अहर्ताएं

        - वह भारत का नागरिक हो।

        - कम से कम 10 वर्षों के लिए किसी न्यायिक पद का धारण किया हो।

        - कम से कम 10 वर्षों के लिए किसी उच्च न्यायालय या किसी अन्य न्यायालय में लगातार अधिवक्ता रहा हो ।

कॉलेजियम प्रणाली:

            यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, न कि संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा।

.सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्त्व मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जाती है और इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।

.उच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्त्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं 

सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। उच्च न्यायालयों के कौन से जज पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। 

                   राष्ट्रपति चाहे तो सिफारिशें को स्वीकार भी कर सकता है अथवा अस्वीकार भी। यदि वह अस्वीकार करता है तो सिफारिशें वापस कॉलेजियम को लौट जाती है। यदि कॉलेजियम द्वारा अपनी सिफारिशें पुनः राष्ट्रपति को भेजता है तो राष्ट्रपति को उसे स्वीकार करना पड़ता है|

 (3) अधीनस्थ न्यायालय

 अधीनस्थ न्यायालय या जिला न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श के आधार पर की जाती है एवं जिला न्यायाधीश के अलावा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा उच्च न्यायालय एवं राज्य लोक सेवा आयोग के परामर्शों के आधार पर की जाती है।

(4) ग्राम न्यायालय

 ग्राम न्यायालय के प्रमुख न्यायाधीश कारी होता है जिसकी नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श के आधार पर की जाती है।

भारत की न्यायपालिका , न्यायपालिका का कार्य ,न्यायपालिका की संरचना, न्यायपालिका को पद से हटाना, कोलेजियम प्रणाली
भारत का न्यायपालिका । संरचना और पद से हटाना । कोलेजियम प्रणाली

  न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया।

 .अनुच्छेद 124 (5) के अनुसार न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया का संचालन संसद के विधि द्वारा किया जाना है इस संदर्भ में संसद द्वारा जजेस अधिनियम, 1968 को पारित किया गया है।

 न्यायाधीश को पद से हटाने का अधिकार राष्ट्रपति को सौंपा गया है, परंतु ऐसा करने हेतु संसद द्वारा प्रस्ताव या संकल्प को पारित किया जाना अनिवार्य है।

 न्यायाधीश को पद से हटाने के प्रस्ताव की पहल लोकसभा या राज्यसभा में की जा सकती है लोकसभा में प्रस्ताव के पारित करने हेतु कम से कम 100 सदस्य का अनुमोदन होना चाहिए । तथा राज्यसभा में 50 सदस्यों का अनुमोदन होना अनिवार्य है।

 .लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के अध्यक्ष द्वारा प्रस्ताव को स्वीकृति और स्वीकृत किया जा सकता है प्रस्ताव को स्वीकृत होने की स्थिति में लोकसभा के स्पीकर या राज्यसभा के अध्यक्ष द्वारा आरोपों की जांच पड़ताल करने हेतु एक समिति का गठन किया जाता है ।

  .अगर इस समिति द्वारा न्यायाधीशों को दोषी करार दिया जाता है तो ऐसी स्थिति में समिति का प्रतिवेदन व न्यायाधीशों को पद से हटाने का प्रस्ताव संसद के विचाराधीन प्रस्तुत किया जाता है।

 .संसद के प्रत्येक सदन द्वारा प्रस्ताव पारित होने पर राष्ट्रपति उसी सत्र में न्यायाधीशों को पद से हटाने का आदेश जारी करता है, संसद के प्रत्येक सदन द्वारा इस प्रस्ताव को विशेष बहुमत से पारित किया जाता है।


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