भारत छोड़ो आंदोलन (1942) : Quit India Movement
संक्षेप में
■ क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीय जनमानस की मनःस्थिति को झकझोरने का कार्य किया। हालाँकि फासीवादी विरोधी शक्तियों के साथ भारतीयों की पूरी सहानुभूति थी, लेकिन युद्ध के दौरान बढ़ती कीमतों एवं वस्तुओं की कमी ने यहाँ की जनता को और भी असंतुष्ट कर दिया।
■ 14 जुलाई, 1942 ई. को वर्धा में आयोजित कॉन्ग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भारतीय स्वाधीनता संबंधी मांग को मनवाने के लिये 'भारत छोड़ो आंदोलन' का प्रस्ताव पारित किया।
■ 7 अगस्त, 1942 ई. को बंबई के ग्वालिया टैंक के मैदान में कॉन्ग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता मौलाना अबुल कलाम आजाद कर रहे थे। इस अधिवेशन में कॉन्ग्रेस के वर्धा प्रस्ताव की पुष्टि कर दी गई तथा 8 अगस्त को भारत छोड़ो आंदोलन के प्रस्ताव को पास कर दिया गया और गांधीजी के नेतृत्व में एक अहिंसक जनसंघर्ष चलाने का निर्णय लिया गया।
■ बंबई के ग्वालिया टैंक में आयोजित ऐतिहासिक सभा में गांधीजी ने अपने भाषण में विभिन्न वर्गों को साफ-साफ निर्देश दिये-
- सरकारी कर्मचारी नौकरी न छोड़ें परंतु कॉन्ग्रेस के प्रति अपनी निष्ठा की घोषणा कर दें।
- सैनिक अपने देशवासियों पर गोली चलाने से इनकार कर दें।
- राजा-महाराजा अपनी जनता की प्रभुसत्ता स्वीकार करें तथा उन रियासतों में निवास करने वाली जनता स्वयं को भारतीय राष्ट्र का अंग घोषित कर दे।
- किसानों से कहा गया था कि जिनमें साहस हो तथा जो अपना सबकुछ दाँव पर लगाने के लिये तैयार हों उन्हें मालगुज़ारी देने से इनकार कर देना चाहिये।
■ 9 अगस्त, 1942 की सुबह आकस्मिक गिरफ्तारियों के कारण ये निर्देश जारी नहीं किये जा सके, किंतु महत्त्वपूर्ण नेताओं की गिरफ्तारी के बाद जनता ने जिस ढंग से ठीक समझा अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
■ गांधीजी को गिरफ्तार कर आगा खाँ पैलेस में रखा गया तथा जवाहरलाल नेहरू, गोविंद वल्लभ पंत, जे. बी. कृपलानी, पट्टाभि सीतारमैया आदि को गिरफ्तार कर अहमदनगर में कैद कर लिया गया।
■ राजेन्द्र प्रसाद को पटना तथा जयप्रकाश नारायण को हजारीबाग की सेंट्रल जेल में रखा गया। बाद में जयप्रकाश नारायण ने जेल से फरार होकर नेपाल में आज़ाद दस्ते का गठन किया ।
■ पूरे देश के कारखानों, कॉलेजों एवं स्कूलों में हड़ताल, प्रदर्शन किया गया। इस आंदोलन के दौरान होने वाली गोलीबारी एवं दमन से क्रुद्ध होकर जनता ने अनेक स्थानों पर हिंसक कार्रवाई भी की।
■ ब्रिटिश दमन के बढ़ने के साथ ही यह आंदोलन भूमिगत रूप से चलने लगा। जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, छोटू भाई पुराणिक, बीजू पटनायक, आर.पी. गोयनका आदि नेताओं ने भूमिगत रहते हुए आंदोलन की बागडोर संभाली।
■ इस आंदोलन के दौरान गिरफ्तारी से बचे नेताओं ने भूमिगत कॉन्ग्रेस रेडियो का संचालन बंबई एवं नासिक से किया। इसके प्रसारणों को मद्रास तक सुना जा सकता था।
■ राममनोहर लोहिया नियमित रूप से रेडियो पर बोलते थे। गुप्त रेडियो संचालन से जुड़े अन्य नेता थे- वी.एम. खाकर, उषा मेहता, नरीमन अब्रवाद आदि।
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान देश के कुछ हिस्सों में समानांतर सरकारें स्थापित की गईं. चित्तू पांडेय के नेतृत्व में बलिया में समानांतर सरकार की स्थापना हुई।
■ बंगाल के मिदनापुर जिले के तामलुक नामक स्थान पर 17 दिसंबर, 1942 ई. को जातीय सरकार की स्थापना की गई। इसका अस्तित्व सितंबर 1944 ई. तक रहा। इस दौरान इस क्षेत्र में गांधीवादी रचनात्मक कार्यों को बढ़ावा दिया गया।
■ तामलुक की जातीय सरकार ने बड़े पैमाने पर राहत कार्य चलाया, स्कूलों को अनुदान दिये तथा एक सशस्त्र विद्युतवाहिनी का गठन किया गया। सतारा की समानांतर सरकार सबसे लंबे समय तक चली। वाई.वी. चाह्वान एवं नाना पाटिल यहाँ के महत्त्वपूर्ण नेता थे। इन नेताओं का अच्युत पटवर्धन तथा अन्य भूमिगत नेताओं के साथ भी संपर्क था।
■ इस क्षेत्र में जनअदालतें लगाई गईं, शराबबंदी लागू कर दी गई तथा गांधी विवाहों का आयोजन किया गया, जिसमें अछूतों को भी आमंत्रित किया जाता था।
■ सतारा की सरकार 1945 ई. तक कायम रही।
■ हालाँकि कम्युनिस्ट पार्टी ने इस आंदोलन का बहिष्कार किया, किंतु स्थानीय स्तर पर सैकड़ों कम्युनिस्टों ने इसमें भागीदारी की।
■ सरकार द्वारा इस आंदोलन को दबाने हेतु प्रदर्शन कर रही भीड़ पर मशीनगनों से गोलियाँ चलवाई गईं, कैदियों को कठोर यातना दी गई।
■ सरकारी दमन के विरोध में गांधीजी ने 10 फरवरी, 1943 ई. को 21 दिन का उपवास करने की घोषणा कर दी।
■ गांधीजी के उपवास शुरू करने के पश्चात् देश एवं विदेशों से उनकी रिहाई की मांग ज़ोर पकड़ने लगी।
■ गांधीजी की रिहाई की मांग को लेकर वायसराय की कार्यकारिणी से एम.एस. एनी, एन.आर. सरकार तथा एच.पी. मोदी ने इस्तीफा दे दिया।
■ रिहाई के प्रति सरकार के उदासीन रवैये को देखते हुए गांधीजी ने 7 मार्च, 1943 ई. को अपनी भूख हड़ताल को वापस ले लिया तथा खराब स्वास्थ्य के आधार पर 6 मई, 1944 ई. को गांधीजी को रिहा कर दिया गया।
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