चक्रवात (Cyclone)
■ जब विशिष्ट वायुराशियों के कारण वायुमंडल में भँवर बन जाते हैं तो उसे चक्रवात कहते हैं। दूसरे शब्दों में, जब वायुदाब में अंतर पड़ने के कारण केंद्र में निम्न दाब का निर्माण हो जाता है एवं उसके चारों ओर उच्च दाब रहता है तो वायु चक्राकार प्रतिरूप बनाते हुए उच्च दाब से निम्न दाब केंद्र की ओर तेज़ी से चलने लगती है, इसे ही चक्रवात कहा जाता है।
■ चक्रवात सामान्यतः चलते-फिरते निम्न दाब केंद्र होते हैं जो चारों ओर से क्रमशः अधिक वायुदाब वाली समदाब रेखाओं से घिरे हुए होते हैं।
■ चक्रवात में वायु के चलने की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के विपरीत एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों की दिशा में होती है।
■ चक्रवात मुख्य रूप से वायुराशियों का ऐसा पुंज होता है जिसकी अपनी एक मौसमी व्यवस्था होती है।
■ चक्रवातों का एक जीवन चक्र होता है जिसमें ये विभिन्न अवस्थाओं से गुज़रने के पश्चात अंततः समाप्त हो जाते हैं।
चक्रवातों के प्रकार (Types of cyclone)
क्षेत्रों के आधार पर चक्रवातों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है:
■ शीतोष्णकटिबंधीय या वाताग्री चक्रवात (Temperate Cyclones)
• शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति तथा प्रभाव क्षेत्र शीतोष्ण कटिबंध, अर्थात् मध्य अक्षांशों में होता है। ये चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध में केवल शीतऋतु में उत्पन्न होते हैं, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में जलीय भाग के अधिक होने के कारण यह वर्षभर उत्पन्न होते रहते हैं।
• ये चक्रवात अंडाकार, गोलाकार, अर्द्ध-गोलाकार तथा 'V' आकार के होते हैं, जिस कारण इन्हें 'निम्न गर्त' कहते हैं। ,
• ये चक्रवात दोनों गोलार्द्धां में 35° से 65° अक्षांशों के मध्य पाये जाते हैं, जिनकी गति पछुआ पवनों के कारण प्राय: पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर रहती है। ये शीत ऋतु में अधिक विकसित होते हैं। इन चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र अटलांटिक महासागर और उत्तर-पश्चिमी यूरोप हैं।
• इनकी उत्पत्ति ठंडी एवं गर्म, दो विपरीत गुणों वाली वायुराशियों के मिलने से होती है।
• शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में दाब प्रवणता बल व पवनों का वेग अपेक्षाकृत कम होता है क्योंकि समदाब रेखाएँ दूर-दूर विकसित होती हैं।
• इसके केंद्र में निम्न वायुदाब तथा बाहर उच्च वायुदाब होता है, जिसके कारण हवाएँ बाहर / परिधि से केंद्र की ओर चलती हैं। केंद्र पर हवाओं का जमाव नहीं होता है बल्कि ये हवाएँ ऊपर उठकर बाहर की ओर चलती हैं, जिसके कारण केंद्र में निम्न वायुदाब बना रहता है और चक्रवात कई दिनों तक जीवित रहता है।
इसके आकार तथा विस्तार
• शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात का आकार अनियमित होता है। • पूर्ण विकसित अवस्था में ये अंडाकार हो जाते हैं। वायुमंडल में इनकी ऊँचाई लगभग 8 से 10 किमी. तक होती है।
• एक आदर्श शीतोष्ण चक्रवात का दीर्घ व्यास 1,920 किमी. तथा लघु व्यास 1,040 किमी. होता है। कभी-कभी इनका विस्तार लाखों वर्ग किमी. क्षेत्र पर हो जाता है। गर्मियों में इनकी औसत गति 32 किमी./घंटा होती है परंतु सर्दियों में बढ़कर 48 किमी./घंटा हो जाती है।
■ उष्णकटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclone)
• उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों में उत्पन्न तथा विकसित होने वाले चक्रवातों को 'उष्ण कटिबंधीय चक्रवात' कहते हैं। ये 5° से 30° उत्तर तथा 5° से 30° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उत्पन्न होते हैं। ध्यातव्य है कि भूमध्य रेखा के दोनों ओर 50 से 8° अक्षांशों वाले क्षेत्रों में न्यूनतम कोरिऑलिस बल के कारण इन चक्रवातों का प्राय: अभाव रहता है।
• उष्ण कटिबंधीय चक्रवात अत्यधिक विनाशकारी वायुमंडलीय तूफान होते हैं, जिनकी उत्पत्ति कर्क एवं मकर रेखाओं के मध्य महासागरीय क्षेत्र में होती है तत्पश्चात् इनका प्रवाह स्थलीय क्षेत्र की तरफ होता है। वह स्थान जहाँ से उष्ण कटिबंधीय चक्रवात तट को पार कर जमीन पर पहुँचते है, 'चक्रवात का लैंडफॉल' कहलाता है।
• भूमध्य रेखा के समीप जहाँ दोनों गोलाद्ध की व्यापारिक पवनें मिलती हैं, उसे 'अंतः उष्ण कटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र/तल' (ITCZ) कहते हैं। इस अभिसरण क्षेत्र/तल का उत्तरी व दक्षिणी दोनों गोलाद्ध में विस्थापन होता है।
• ग्रीष्म ऋतु में ITCZ का विस्थापन भूमध्य रेखा से उत्तरी गोलार्द्ध में होता है। चूँकि, इस अभिसरण तल पर व्यापारिक पवनों का अभिसरण व आरोहण होता है, फलतः सतह पर निम्न वायुदाब का विकास होता है।
• इसी निम्न वायुदाब के केंद्र में विभिन्न क्षेत्रों से पवनें अभिसरित होती हैं तथा कोरिऑलिस बल के प्रभाव से वृत्ताकार मार्ग का अनुसरण करती हुई ऊपर उठती हैं। फलतः वृत्ताकार समदाब रेखाओं के सहारे उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती है।
• उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में वायु के संचरण की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की विपरीत दिशा में अथवा वामावर्त तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सुइयों के चलने की दिशा में अथवा दक्षिणावर्त होती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के लिये आवश्यक दशाएँ
इनकी उत्पत्ति एवं विकास के लिये अनुकूल स्थितियाँ निम्नलिखित हैं-
• गर्म तथा आर्द्र वायु का लगातार आरोहण होना चाहिये, क्योंकि चक्रवात को ऊर्जा की आपूर्ति संघनन की प्रक्रिया में छिपी हुई गुप्त ऊष्मा (Latent Heat) से होती है।
• वृहद् समुद्र सतह, जहाँ समुद्री सतह का ताप 27°C से अधिक होना चाहिये।
• समुद्री सतह पर निम्न वायुदाब का विकास तथा वायु का अभिसरण व आरोहण होना चाहिये।
• ‘कोरिऑलिस बल' की उपस्थिति अनिवार्य है क्योंकि यह वायु को चक्रीय गति प्रदान करती है।
धरातलीय चक्रवात के ऊपरी वायुमंडलीय परत में प्रतिचक्रवातीय दशाएँ होनी चाहिये।
भारत में चक्रवातों का प्रभाव
■ भारत की तटीय सीमा 7516 किलोमीटर है। जिसमें से 5716 किलोमीटर का क्षेत्र सघन चक्रवात से प्रभावित है। बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में प्रतिवर्ष 5-6 चक्रवात उत्पन्न होते हैं। पश्चिमी तट की अपेक्षा पूर्वी तट चक्रवात के प्रति काफी संवेदनशील है। पूर्वी घाट पर स्थित तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, पुदुचेरी राज्य चक्रवात के प्रति अति संवेदनशील हैं। देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10% भाग चक्रवात से प्रभावित है। एक अनुमान के अनुसार 13 तटीय राज्यों की लगभग एक-तिहाई जनसंख्या चक्रवात संबंधी आपदा की चपेट में है।
■ भारत मुख्यतः उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित होता है। इन चक्रवातों की उत्पत्ति अप्रैल से नवंबर माह के बीच होती है। इनकी उत्पत्ति बंगाल की खाड़ी में उस समय होती है जब तापमान 27°C से अधिक हो। अत्यधिक वाष्पीकरण के कारण आर्द्र हवाओं के ऊपर उठने से इनका निर्माण होता है। अनुमान है कि 58% चक्रवाती तूफान बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं।
■ इन चक्रवातों के फलस्वरूप आकाश में काले कपासी बादल छा जाते हैं एवं घनघोर वर्षा होती है। ये चक्रवात अपने निम्न दाब के कारण ऊँची सागरीय लहरों का निर्माण करते हैं। अगर इनकी प्रभाविता अधिक हो तो ये तटीय भागों में व्यापक विनाश लाते हैं।
■ चक्रवात एक विध्वंसकारी घटना है जिसके परिणामस्वरूप कई घातक प्रभाव देखने को मिलते हैं जिनमें चक्रवातीय वर्षा, तेज़ आँधी आदि शामिल हैं। इनके परिणामस्वरूप जन-धन की काफी हानि होती है। इसके साथ ही चक्रवात अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों में खेतों में खड़ी फसल के साथ-साथ पालतू पशुओं को भी काफी नुकसान पहुँचाता है। इससे सामाजिक-आर्थिक एवं पर्यावरणीय स्तर पर होने वाला विकास बाधित होता है।
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के लाभ
यद्यपि ये चक्रवात अपनी विनाशकारी प्रकृति के लिये जाने जाते हैं तथापि इनके कुछ लाभ भी हैं, जैसे- प्रभावित क्षेत्रों से सूखे की स्थिति से राहत, गर्मी से राहत तथा उष्णकटिबंधों के तापमान का शीतोष्ण कटिबंधों में स्थानांतरण। इस प्रकार ये विश्व में स्थिर एवं गर्म तापमान बनाए रखने में मदद करते हैं।
चक्रवातीय आपदा प्रबंधन हेतु भारत के प्रयास
■ भारत में विभिन्न प्रकार की आपदाओं से निपटने के लिये राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई है जिसका चेयरमैन प्रधानमंत्री होता है। इसी प्रकार राज्यों एवं जिला स्तर पर आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की स्थापना की गई है।
■ देश में आने वाले चक्रवात संबंधी पूर्व चेतावनी देने के लिये भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) नोडल सरकारी एजेंसी है। देश में प्रभावी परिचालन चक्रवात गतिविधियों के लिये भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के अंतर्गत कार्यरत पृथ्वी प्रणाली विज्ञान संगठन (ESSO) एक उपयुक्त संस्थागत तंत्र के रूप में कार्य कर रहा है। ईएसएसओ चक्रवात संबंधी उपलब्ध मॉडलिंग और नियंत्रित सिस्टम के सही कार्य करने के कारण ही 5 से 7 दिन पूर्व ही आने वाले चक्रवात की घोषणा करने में सक्षम है।
■ राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम प्रबंधन परियोजना (NCRMP): इस परियोजना के अंतर्गत चक्रवातों के प्रभावी प्रबंधन हेतु कई संरचनात्मक और गैर-संरचनात्मक उपाय किये जा रहे हैं। संरचनात्मक उपायों में चक्रवात आश्रयों का निर्माण, चक्रवात प्रतिरोधी इमारतों का निर्माण, सड़क लिंक, पुल, नहर, नाली, तटबंध, संचार और विद्युत पारेषण नेटवर्क आदि शामिल हैं।
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