सुप्रीम कोर्ट (सर्वोच्च न्यायालय) द्वारा 1950 से लेकर अब तक लिया गया महत्वपूर्ण 25 निर्णय -
1. ए. के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1950)
ए. के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य (वर्ष 1950) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय संविधान के भाग III के तहत मौलिक अधिकारों की व्याख्या की। इस मामले में यह माना गया कि अनुच्छेद 21 के तहत सुरक्षा केवल मनमानी कार्यकारी कार्रवाई के खिलाफ उपलब्ध है, न कि मनमानी विधायी कार्रवाई से।
2. शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951)
यह मामला संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम 1951 से जुड़ा था, जिसमें संपत्ति के अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 31A और 31B जोड़े गए थे। अदालत ने माना कि संसद के पास अनुच्छेद 368 के तहत मौलिक अधिकारों में भी संशोधन करने की शक्ति है। यह निर्णय भविष्य में संविधान संशोधनों की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
3. बेरुबारी यूनियन केस (1960)
भारत और पाकिस्तान के बीच सीमा विभाजन को लेकर यह मामला था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय क्षेत्र का किसी अन्य देश को हस्तांतरण संविधान संशोधन के माध्यम से ही हो सकता है। यह निर्णय भारत की क्षेत्रीय अखंडता और संविधान संशोधन की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।
4. सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1965)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शंकर प्रसाद के फैसले की पुष्टि की और कहा कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन कर सकती है। हालांकि, यह मुद्दा संविधान संशोधन की सीमा को लेकर बाद के मामलों में और अधिक जटिल हो गया।
5. गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967)
सुप्रीम कोर्ट ने संसद की शक्ति को सीमित करते हुए कहा कि संसद संविधान के मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती। अदालत ने इस निर्णय में मौलिक अधिकारों की सुरक्षा की पुष्टि की, जिससे भविष्य में संविधान संशोधनों की प्रक्रिया पर गहरा प्रभाव पड़ा।
6. केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
यह मामला भारतीय न्यायिक इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण मामला माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने "बेसिक स्ट्रक्चर डॉक्ट्रिन" को प्रतिपादित किया और कहा कि संविधान का मूल ढांचा संसद द्वारा संशोधित नहीं किया जा सकता। इस निर्णय ने संविधान की स्थायित्व और लोकतंत्र की सुरक्षा की गारंटी दी।
निर्णय:
इस ऐतिहासिक निर्णय में, 13 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 7:6 के बहुमत से यह निर्णय दिया कि -
क) संसद के पास संविधान संशोधन की शक्ति है, लेकिन वह संविधान के "मूल ढांचे" को नहीं बदल सकती।
ख) मूल ढांचे में लोकतंत्र, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, विधायिका और कार्यपालिका की विभाजन की व्यवस्था, मौलिक अधिकार आदि शामिल हैं।
ग) अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन शक्ति का प्रयोग करते समय संसद कुछ भी संशोधित कर सकती है, लेकिन इन मूल सिद्धांतों को समाप्त नहीं कर सकती।
7. इंदिरा गांधी बनाम राज नारायण (1975)
यह मामला 1975 के आपातकाल के दौरान हुआ, जब इंदिरा गांधी के चुनाव को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवैध घोषित किया था। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के 39वें संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर दिया और लोकतंत्र की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण फैसले लिए।
8. मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)
इस मामले में अदालत ने अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) की विस्तृत व्याख्या की और कहा कि किसी भी प्रकार का प्रतिबंध उचित, न्यायसंगत और तार्किक होना चाहिए। यह निर्णय कानून के शासन और मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
9. मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान का मूल ढांचा संसद द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता। इस निर्णय ने मौलिक अधिकारों की रक्षा की और नीति निर्देशक तत्वों के साथ संतुलन स्थापित किया। अदालत ने अनुच्छेद 368 में संशोधन के अधिकार की सीमा को और स्पष्ट किया।
10. एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994)
इस फैसले ने संघीय ढांचे और संविधान की आधारभूत संरचना की रक्षा की। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति शासन की घोषणा न्यायिक समीक्षा के अधीन होगी, और इसे मनमाने ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। यह निर्णय राज्यों की स्वायत्तता की सुरक्षा करता है।
11. विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997)
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने "विशाखा गाइडलाइन्स" जारी की, जो कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए दिशानिर्देश थे। अदालत ने कहा कि कार्यस्थल पर सुरक्षित और सम्मानजनक माहौल सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है। यह निर्णय कार्यस्थल पर लैंगिक समानता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रहा।
12. टी.एम.ए. पाई फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2002)
यह मामला अल्पसंख्यक और गैर-अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थानों के अधिकारों से संबंधित था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और संचालित करने का अधिकार है, लेकिन उन्हें कुछ नियमों का पालन करना होगा।
13. इंहिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992)
सुप्रीम कोर्ट ने मंडल आयोग की सिफारिशों को मान्यता दी और आरक्षण की सीमा 50% तय की। अदालत ने कहा कि आरक्षण नीति में संतुलन और न्याय की आवश्यकता है, जिससे भारतीय समाज में समानता और अवसर की गारंटी दी जा सके।
14. नलसा बनाम भारत संघ (2014)
सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को "थर्ड जेंडर" के रूप में मान्यता दी और कहा कि उन्हें समाज में समान अधिकार मिलना चाहिए। इस फैसले ने भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय की स्थिति को बदलने का प्रयास किया और उनकी गरिमा और अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम था।
15. सबरिमाला मंदिर केस (2018)
सुप्रीम कोर्ट ने सभी आयु वर्ग की महिलाओं को केरल के सबरीमाला मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी। यह निर्णय धार्मिक स्वतंत्रता, महिलाओं के अधिकारों और संवैधानिक समानता के सवाल पर आधारित था। अदालत ने कहा कि किसी भी धर्म की परंपरा, जो संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, उसे मान्यता नहीं दी जा सकती।
16. शायरा बानो बनाम भारत संघ (2017)
यह मामला मुस्लिम समुदाय में "तलाक-ए-बिद्दत" (तीन तलाक) की वैधता से जुड़ा था। सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया और इसे महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन बताया।
17. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017)
इस मामले में अदालत ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया। इस निर्णय ने डिजिटल युग में नागरिकों की गोपनीयता की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कानूनी ढांचा प्रदान किया। अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को निजता का अधिकार है।
18. नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ (2018)
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को आंशिक रूप से रद्द कर दिया, जिससे सहमति से समलैंगिक संबंधों को अपराध मुक्त किया गया। यह फैसला LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों को मान्यता देने के लिए एक बड़ा कदम था और समलैंगिकता को एक नैतिक और कानूनी स्वीकार्यता प्रदान की।
19. अयोध्या भूमि विवाद (2019)
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर के निर्माण की अनुमति दी और मुस्लिम पक्ष को अलग से पांच एकड़ भूमि देने का आदेश दिया। यह मामला धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था और भारतीय इतिहास का सबसे संवेदनशील विवाद था।
20. लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि आपराधिक दोषी ठहराए गए व्यक्ति संसद या राज्य विधानसभाओं में सदस्यता रखने के लिए अयोग्य होंगे। इस फैसले ने राजनीति में आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने के प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
21. के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ - आधार केस (2018)
अदालत ने आधार अधिनियम की संवैधानिकता की पुष्टि की, लेकिन इसे कुछ सेवाओं के लिए अनिवार्य रखने और कुछ के लिए वैकल्पिक रखने का निर्देश दिया। यह फैसला आधार और निजता के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास था।
22. राष्ट्रीय न्यायाधिकरण अधिनियम (2014)
अदालत ने इस निर्णय में न्यायाधिकरणों की स्वायत्तता सुनिश्चित की और कहा कि उनके कामकाज में सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इससे न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता और न्याय की स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
24. सबरीमाला मंदिर बनाम भारत संघ (2019)
अदालत ने महिलाओं के प्रवेश से संबंधित पुनर्विचार याचिका को स्वीकार किया और इसे एक बड़ी पीठ को भेजा ताकि विभिन्न धार्मिक मुद्दों पर पुनः विचार हो सके।
25.प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) की संवैधानिकता (2022)-
अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम कानून की संवैधानिकता को सही ठहराया और प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शक्तियों की पुष्टि की।
ये निर्णय भारतीय न्यायिक इतिहास में मील के पत्थर हैं, जिन्होंने देश के संवैधानिक ढांचे और नागरिकों के अधिकारों को मजबूत किया है।
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