मुद्रास्फीति क्या है : प्रकार, प्रभाव, मापने के तरीके और नियंत्रण के उपाय
परिचय
मुद्रास्फीति एक आर्थिक अवधारणा है, जिसमें समय के साथ वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ती हैं, जिससे मुद्रा की क्रय शक्ति (purchasing power) कम हो जाती है। इसे सरल शब्दों में समझें तो, यदि आज ₹100 में कुछ चीजें खरीदी जा सकती हैं, लेकिन भविष्य में वही चीजें ₹120 में मिलें, तो इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति बढ़ गई है।
मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखना किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि बहुत अधिक मुद्रास्फीति (Hyperinflation) आर्थिक अस्थिरता ला सकती है, जबकि बहुत कम मुद्रास्फीति (Deflation) आर्थिक विकास को बाधित कर सकती है।
मुद्रास्फीति को मापने के तरीके
मुद्रास्फीति को मापने के लिए विभिन्न संकेतकों और सूचकांकों का उपयोग किया जाता है।
1. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index - CPI)
यह सूचकांक आम उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को मापता है।
इसमें खाद्य पदार्थ, कपड़े, परिवहन, स्वास्थ्य, शिक्षा, और अन्य दैनिक आवश्यकताएँ शामिल होती हैं।
अगर CPI बढ़ता है, तो इसका मतलब है कि मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
2. थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index - WPI)
यह सूचकांक उन वस्तुओं की कीमतों को मापता है जो थोक विक्रेताओं द्वारा खरीदी और बेची जाती हैं।
इसमें प्राथमिक वस्तुएँ (कृषि उत्पाद, खनिज आदि), विनिर्मित उत्पाद और ईंधन शामिल होते हैं।
यह आम तौर पर मुद्रास्फीति की प्रारंभिक स्थिति को दिखाता है क्योंकि थोक मूल्य आगे चलकर खुदरा कीमतों को प्रभावित करते हैं।
3. जीडीपी अपस्फीतिकारक (GDP Deflator)
यह सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के साथ जुड़े समग्र मूल्य स्तर में बदलाव को मापता है।
यह व्यापक स्तर पर मुद्रास्फीति का एक संकेतक है क्योंकि इसमें सभी वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें शामिल होती हैं।
मुद्रास्फीति के प्रकार
1. मांग-संचालित मुद्रास्फीति (Demand-Pull Inflation)
जब अर्थव्यवस्था में कुल मांग (Total Demand) आपूर्ति (Supply) से अधिक हो जाती है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं। इसके कारण हो सकते हैं:
उपभोक्ताओं की आय बढ़ना, जिससे उनकी क्रय शक्ति (Purchasing Power) बढ़ती है।
सरकार द्वारा सार्वजनिक व्यय (Government Spending) में वृद्धि।
ब्यज दरें कम होने से लोग अधिक ऋण लेने लगते हैं और अधिक खर्च करने लगते हैं।
2. लागत-संचालित मुद्रास्फीति (Cost-Push Inflation)
जब उत्पादन की लागत (Cost of Production) बढ़ जाती है, तो उत्पादों की कीमतें भी बढ़ जाती हैं। इसके कारण हो सकते हैं:
कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि।
मजदूरी दरों का बढ़ना।
करों में वृद्धि या व्यापार प्रतिबंध।
प्राकृतिक आपदाएँ या युद्ध जैसी परिस्थितियाँ।
3. मुद्रा-स्फीतिजनित मुद्रास्फीति (Monetary Inflation)
जब बाजार में मुद्रा की आपूर्ति बहुत अधिक हो जाती है, तो कीमतें बढ़ जाती हैं। इसके कारण हो सकते हैं:
केंद्रीय बैंक (जैसे RBI) द्वारा अधिक मुद्रा छापना।
बैंकों द्वारा अधिक ऋण प्रदान करना।
ब्याज दरों में अत्यधिक कटौती।
4. घुमावदार मुद्रास्फीति (Wage-Price Spiral)
जब मजदूरी बढ़ती है, तो उत्पादन लागत बढ़ती है।
इससे उत्पादों की कीमतें बढ़ती हैं, जिससे महंगाई बढ़ती है।
फिर मजदूर अधिक वेतन की मांग करते हैं, जिससे यह चक्र लगातार चलता रहता है।
5. हाइपरइन्फ्लेशन (Hyperinflation)
जब मुद्रास्फीति अत्यधिक तेज़ी से बढ़ती है और मुद्रा का मूल्य बहुत तेजी से गिरता है।
उदाहरण: 1920 के दशक में जर्मनी में, और हाल ही में वेनेजुएला में।
6. स्टैगफ्लेशन (Stagflation)
जब मुद्रास्फीति और बेरोजगारी दोनों एक साथ बढ़ते हैं।
यह एक खतरनाक स्थिति होती है क्योंकि सामान्यतः मुद्रास्फीति के साथ आर्थिक विकास भी होता है, लेकिन स्टैगफ्लेशन में विकास नहीं होता।
मुद्रास्फीति के प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव:
1. आर्थिक विकास: जब महंगाई एक सीमित दायरे में होती है, तो यह आर्थिक विकास में सहायक होती है क्योंकि लोग पैसा खर्च करने के लिए प्रेरित होते हैं।
2. ऋण लेने वालों को लाभ: मुद्रास्फीति के कारण ऋण की वास्तविक कीमत घट जाती है, जिससे ऋण लेने वालों को फायदा होता है।
3. नौकरी के अवसर: यदि मुद्रास्फीति के कारण मांग बढ़ती है, तो कंपनियाँ अधिक उत्पादन करती हैं और नए रोजगार उत्पन्न होते हैं।
नकारात्मक प्रभाव:
1. क्रय शक्ति कम होना: अगर मुद्रास्फीति बहुत अधिक हो, तो लोगों की आय का मूल्य घट जाता है और वे कम चीजें खरीद पाते हैं।
2. बचत पर नकारात्मक प्रभाव: मुद्रास्फीति के कारण बैंक में जमा धन की वास्तविक कीमत गिर जाती है।
3. आर्थिक अस्थिरता: अत्यधिक मुद्रास्फीति से निवेश में गिरावट आती है और अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है।
मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के उपाय
1. मौद्रिक नीति (Monetary Policy) - केंद्रीय बैंक द्वारा
रेपो दर (Repo Rate) और रिवर्स रेपो दर (Reverse Repo Rate) को नियंत्रित करके मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है।
नकद आरक्षित अनुपात (CRR) और वैधानिक तरलता अनुपात (SLR) को बढ़ाकर बाजार से अतिरिक्त धन निकाला जाता है।
2. राजकोषीय नीति (Fiscal Policy) - सरकार द्वारा
करों में वृद्धि करके मुद्रा की आपूर्ति को नियंत्रित किया जाता है।
अनावश्यक सरकारी खर्चों को कम किया जाता है।
3. आपूर्ति बढ़ाने के उपाय
उत्पादन क्षमता बढ़ाना।
कृषि और औद्योगिक उत्पादन को बढ़ावा देना।
4. मूल्य नियंत्रण
सरकार आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण रख सकती है।
निष्कर्ष
मुद्रास्फीति एक आवश्यक आर्थिक प्रक्रिया है, लेकिन इसे नियंत्रित रखना जरूरी होता है। हल्की मुद्रास्फीति आर्थिक विकास में सहायक होती है, लेकिन अत्यधिक मुद्रास्फीति आर्थिक अस्थिरता ला सकती है। इसे नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बैंक और सरकार को विभिन्न नीतियों का उपयोग करना पड़ता है।
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